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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ १२ ॥ ॥ १३ ॥ ॥ १४ ॥ ॥ १५ ॥ ॥ १६॥ ॥ १७॥ सत्तमनरयगमाईणि इत्थियाणं पि वण्णियाई ति । तण्ण लिहणाइदोसा संति विरोहा सुए वि जओ आभिणिबोहियनाणे अट्ठावीसं हवंति पयडीओ। आवस्सयम्मि वुत्तं इममण्णह कप्पभासम्मि नाणमवाय-धिईओ दंसणमिटुं च उग्गहेहाओ । एवं कह न विरोहो विवरीयत्तेण भणणाओ गइ-इंदियाइसु दारेसु न सम्मसासणं इटुं । एगिदीणं विगलाण मइ-सुए तं चऽणुण्णायं सयगे पुण विगलाणं एगिदीणं च सासणं इटुं। न पुणो मइ-सुयनाणे तहेवमावस्सए वुत्तं सीहो तिविट्ठजीओ जाओ सत्तममहीओं उव्वट्ठो । जीवाभिगममएणं मीणत्तं चेव सो लहइ नायासुं पुव्वण्हे दिक्खा नाणं च भणियमवरण्हे । आवस्सयम्मि नाणं बीयम्मि दिणम्मि मल्लीस्स छउमत्थप्परियाओ सड्ढछम्मास-बारससमाओ। मग्गसिर किण्हदसमी दिक्खाए वीरनाहस्स वइसाहसुद्धदसमी केवललामम्मि संभविज्ज कहं । इय सत्थेसुं बहवो दीसंति परोप्परविरोहा तस्संभवे वि आवस्सयाइँ सत्थाइँ जह पमाणाइँ। तह किं महानिसीहं घिप्पइ न पमाणबुद्धीए अह पंचनमोकाराइयाणमुवहाणमणुचियं भिण्णं । आवस्सयस्स अंतो पाढाओ तहाहि सामइयं नवकारपुव्वयं चिय कारइ जं ता तयंगमेसो ति । अण्णं च इत्थ अत्थे पयर्ड चिय कित्तिअं एयं ॥ १८॥ ॥ १९ ॥ ॥ २० ॥ ॥ २१ ॥ ॥ २२ ॥ ॥ २३ ॥ ૫૧ For Private And Personal Use Only
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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