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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ २ ॥ ॥३ ॥ ॥४ ॥ ॥ उवहाणपइट्ठापंचासग ॥ नमिऊण वीरनाहं, वोच्छं नवकारमाइ उवहाणे। किं पि पइट्ठाणमहं विमूढसंमोहमहणत्थं जं सुत्ते निद्दिटुं पमाणमिह तं सुओवयाराइ । आयाराईणं जह जहुत्तमुवहाणनिव्वहणं वुत्तं च सुए नवकार-इरिय-पडिक्कमण-सक्कथयविसयं । चेइय-चउवीसत्थय-सुयत्थएसुं च उवहाणं कि पुण सुत्तं तं इह जत्थ नमोकारमाइउवहाणं । उवइट्ठ आह गुरू, महानिसीहक्खसुयखंधे एसो वि कह पमाणं नंदीए हंदि कित्तणाओ त्ति । जं तत्थेव निसीहं महानिसीहं च संलत्तं अह तं न होइ एयं एवं आयारमाइवि तयण्णं । तुल्ले वि नंदिपाढे को हेऊ विसरिसत्तम्मि अह दुब्बलिसूरीणं, पराभवत्थं कयं सबुद्धीए । गोटेणं ति मयं नो इमं पि वयणं अविण्णूणं पुट्ठमबद्धं कम्मं अप्परिमाणं च संवरणमुत्तं । जं तेण दुर्ग एयं तं विय अपमाणमक्खायं सेसं तु पमाणत्तेण कित्तियं गोट्ठमाहिलुत्तं पि। इग-दुगपभेयए च्चिय जं सुत्ते निण्हवा वुत्ता किंच न गोट्ठामाहिलकयमेयं नंदिसेणचरिए जं । कह भोगफलं भणिही अबद्धिओ बद्धपुढे सो अह भूरि मयविरोहा पमाणया नो महानिसीहस्स। लोइयसत्थाणं पिव तहाहि तम्मी अणुचियाई 1॥६॥ ॥ ७ ॥ ॥ ८॥ ॥१०॥ ५० For Private And Personal Use Only
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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