________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ २४ ॥
॥ २५ ॥
॥ २६॥
॥ २७ ॥
॥ २८ ॥
॥ २९ ॥
नंदिमणुओगदारं, विहिवहुवग्घाइयं च नाऊणं । काऊण पंचमंगलमारंभो होइ सुत्तस्स इय सामाइयनिज्जुत्तिमज्झमज्झासिओ इमो ताव । पडिकमणे य पविट्ठो इरियावहियाएँ पाढो वि अरिहंतचेइयाण य वंदणदंडो सुयत्थओ य तहा। काउसग्गज्झयणे पंचमए अणुपविट्ठो ति बीयज्झयणसरूवो चउवीसथओ वि जं विणिद्दिट्ठो। आवस्सयाउ न पिहो जुज्जइ ता तेसिमुवहाणं आवस्सओवहाणे ताणुवहाणं कयं समवसेयं । कयओवहाणे य पिहो तक्करणे होइ अणवत्था भण्णइ उत्तरमिहइं नवकारो आइमंगलत्तेणं । वुच्चइ जया तयच्चिय सामइयऽणुप्पवेसो से जइया य सयण-भोयणनिज्जरहेउं पढिज्जए एसो। तइया सतत एव हि गिज्झइ अण्णो सुयक्खंधो इह-परलोयत्थीणं सामाइयविरहिओ वि वावारो। दीसइ नवकारगओ तदत्थसत्थाणि य बहूणि नवकारपडल-नवकारपंजिया-सिद्धचक्कमाईणि । सामाइयंगभावो इमस्स णेगंतिओ तम्हा पढमुच्चारणमित्ते वि ऽणुप्पवेसो हविज्ज सामइए। एयस्स सव्वहा जइ ता नंदणुओगदाराणं तदणुप्पवेसओ च्चिय तवचरणं नेय जुज्जइ विभिण्णं । दीसइ य कीरमाणं जोगविहीए य भण्णंतं [भिण्णत्तं] किं वा भिण्णत्ते सव्वहा वि सामाइयाउ एयस्स। काऊण पंचमंगलमिच्चाई अणुचियं वयणं
॥३०॥
॥ ३१ ॥
॥ ३२॥
॥ ३३ ॥
॥ ३४ ॥
॥ ३५ ॥
પર
For Private And Personal Use Only