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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जो संतावर अणुदियहं छव्विहजीवनिकाउ । नरयनिबंधणकम्मर बलि किज्जउ सो काउ [ दण्ड दमवि म] णु वसि करहु धरि संजमि अप्पाणु । मोह महाबलु निज्जिणिहिं जिम पावहि निरवाणु समह भूसण गवसण संजमभंजरि एह । [[सिरि] महेसरसूरि गुरु कण्णि कुणंत सुणेह पू. आ. श्री मानतुंगसूरिविरचितम् ॥ जयन्तीप्रकरणम् ॥ नमिय नमिरामरेसरसिरसेहरमणिमऊहविच्छुरियं । वीरचरणारविन्दं जयन्तियापगरणं वोच्छं पुच्छइ कहावसाणे गुरुयत्तं कह कुणन्ति जिण जीवा ? | वी भणइ जयन्ती अट्टारस पावद्वाणेहिं पाणिवह मुसावाए अदत्त मेहुण परिग्गहे । कोहे माणे माया लोभे पिज्जे दोसे य कलहे य Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अब्भक्खाण अरइ पेसुण्णे तह परपरिवाए । मायामोसे मिच्छादंसणसल्ले य अट्ठारे भंते भव्वत्तं किं सभावओ ? वावि होइ परिणामा ? साहावियं जयन्ति ! भवत्तं नेय परिणामा भवसिद्धिया भंते! जइ सिज्झिस्संति तो भवे लोओ। भवसिद्धिएहि रहिओ, न भवइ स जयंति ! नायाओ सयलागासपएसा सेढिपरमाणुमित्तखंडेहि । समए समए हीरइ अणंतउस्सप्पिणीकालं ૧૧ For Private And Personal Use Only ॥ ३३ ॥ ।। ३४ ।। ॥ ३५ ॥ ॥ १ ॥ ॥२॥ ॥ ३ ॥ 11 8 11 114 11 ॥ ६ ॥ 119 11
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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