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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वरिससहस्सिहिं जं कियउ तवु संजमु उवयारु । कोहमहानलसंगमिण सो दहि किज्जइ च्छारु ॥ २१ ॥ माण मडप्फर विप्फुरइ विणइ न वट्टइ कोइ । विणयविहूणह निट्ठरह नाणविढत्ति न होइ ॥ २२ ॥ विणु नाणेण चरित्तु नहु विण चरणेण न मुक्खु । मुक्खुविहीणा[णहं] कहवि नहु होइ निरंतर सुक्खु ।। २३ ॥ ता मिल्हेविणु माणभडु विणय निवेसहिं चित्तु । अहव सहेसहि दुक्खडां भवपंजरि निक्खित्तु ॥ २४॥ माया [मा मा?] परवंचणु करहिं परवंचंतहं पाउ। जीवहं पावपरव्वसह नरय तिरिक्खउ ठाउ ॥ २५ ॥ उटुंती लोहह लहरि झंपिय जेण झडत्ति । तसु भवजलहिसमुत्तरणि फुरइ समग्गलसत्ति ॥ २६॥ जीव कसाय न निज्ज [ज्जि] णइ अनु[णु] विप्फुरइ सरोसु । काई निहत्थउ नीससिहि करइ सरीरइ सोसु ॥ २७॥ जेणि न रुद्धउ विसयसुहि धावंतउ मणुमीणु । तेणि भमेवउ भवगहणि जंपंतइ जण दीणु ॥ २८ ॥ संजमबंधणि बंधि धरि धावन्तउ मणहत्थि। जइ काहिसि अहु सुक्कलु ता पाडिहइ अणस्थि ॥ २९ ॥ जीह जि वण्णइ जिणह गण दंसण नाण चरित्त । सा सलहिज्जइ सज्जणिहिं पयडियपवयणतत्त ॥ ३० ॥ जा परदोस समुल्लवइ मिच्छपवत्तणसज्ज । सा जीहा मह मुहकुहरि जिण जम्मवि म करिज्ज ॥ ३१॥ जिणचंदगुरुजणविणउ तवु संजमु उवयारु । जं किज्जइ खणभंगुरिण देहह इत्तिउ सारु ॥ ३२ ॥ १६० For Private And Personal Use Only
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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