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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org नो चेव अवहिया जह एवं भव्वावि नेव निट्ठन्ति । नवि सिज्झिर्हिति तो भण किष्णु भव्वत्तणं ? जइ होऊणं भव्वा वि केइ सिद्धिं न चेव गच्छन्ति । एवं तेऽवि अभव्वा को व विसेसो भवे तेसिं ? भण्णइ भव्वो जोग्गो दारुदलियत्ति वावि पज्जाया । जग्गो वि पुण न सिज्जइ कोइ रूक्खाइदिट्ठन्ता पडिमाईणं जोग्गा बहवो गोसीसचन्दणदुमाई | संति अजोग्गा वि इहं अण्णे एरण्डभिण्डाइ न य पुण पडिमुप्पायणसंपत्ती होइ सव्वजोगाणं । तेसि पि असम्पत्ती न य तेसिमजोग्गया होइ किं पुणजा संपत्ती सा नियमा होइ जोग्गरूक्खाणं । न य होइ अजोग्गाणं एमेव य भव्वसिज्झणया अहवा पडुच्चकालं न सव्वभव्वाण होइ वोच्छिती । जं तीयणागयाओ अद्धाओ दो वि तुल्लाओ तत्थाऽइइअद्धाए सिद्धो एगो अनंतभागो सिं । कामं तावउ च्चिय सिज्झिही अणागयद्धाए ते दो अन्त भागा होउं समुच्चियअणन्तभागो सिं । एवं पि सव्वभव्वाण सिद्धिगमणं न निदिट्टं जागरिया सुत्तत्तं किं साहु ? जिण जयन्ति ! जागरिया । धम्मी मम्मीणं सुत्तत्तं साहु निद्दिट्ठ पाणाणं भूयाणं सत्ताणं तह जयंति ! जीवाणं । दुक्खणसोयणपरियावणाईसुं जेण वट्टंति Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निच्वं अहम्मकम्मा अहम्मवित्ती अहम्मआयारा । अहमम्मि रज्जमाणा सत्ता सुत्ता उ ते सेया ૧૬૨ For Private And Personal Use Only ॥ ८ ॥ ॥ ९ ॥ ॥ १० ॥ ॥ ११ ॥ ॥ १२ ॥ ॥ १३ ॥ ॥ १४ ॥ ।। १५ ।। ॥ १६ ॥ 11 219 11 1186 11 ॥ १९ ॥
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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