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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाढपरिग्गहगहगहिउ नरु हारइ अपवागु । मिल्हि परिग्गहदुव्वसणु सिवसुहकारणि लग्गु ॥९॥ पंचासवविरमणु करहि करहि म निग्घण पाउ। सिद्धिपुरंधिहि उवरि जइ तुज्झ पइट्टइ भाउ ॥१०॥ कक्कसि फरसि म उब्विअसि निरु कोमलइ म रज्जु । मज्झत्थिउ [इ] वित्थरहि जिअ जइ मणि निव्वुइकज्जु ॥ ११ ॥ रसणिदिउ दुद्दम दमिउ रसि रसि गिद्धउ जेण । अवर य इंदिय विसयगय लीलई निज्जिय तेण ॥१२॥ गंधसुगंधिइं रइ करइं दुग्गंधिई संताउ। घाणिदियकयउक्करसि जीव म बंधइ पाउ ॥ १३ ॥ जे जिणनाहह मुहकमलअवलोअणकयतोस । धण्ण तिलोअहं लोअणई मुहमंडणपर सेस ॥ १४॥ पररमणी जे रूवभरि पिक्खिवि जे विहि [ह] संति। रागनिबंधण ते नयण जिण जम्म वि नहु हुन्ति ॥ १५ ॥ जीव म रंजहि मणरयण सुणवि मणोहर गेउ। खरनिट्ठरसद्दावसरि मा करि मणि उव्वेउ ॥१६॥ गय मय महुअर झस सलह नियनियविसयपसत्त । इक्किक्केण इ इन्दियण दुःख निरंतर पत्त ॥ १७ ॥ इक्किणि इंदिय मुक्कलिण लब्भइ दुक्ख सहस्स । जसु पुण पंचइ मुक्कला कह कुसलत्तणु तस्स ॥१८॥ इंदियसुक्खि मे रई करहु संभावहिं अपवग्गु । जिअ खणभंगुरविसयसुहमग्गि अलग्गि म लग्गु ॥ १९ ॥ वयरपरंपर संघडइ बहु उव्वेय करेइ । कोउ वियंभिउ भंति नहु जीवहं दुग्गइ नेइ ॥ २०॥ ૧૫૯ For Private And Personal Use Only
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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