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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org चउत्थं जलेण सिद्धा लप्पसिया पंचमं तु पूयलिया । चोप्पडिया तावियाए परिपक्का तिसु मिलिएसु आवस्सयचुण्णीए परिभणियं इत्थ वण्णियं कहियं । कहियव्वं कुसलाणं पउंजियव्वं तु कारणए Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पू. आ. श्री महेश्वरसूरिविरचितम् ॥ संयममंजरी ॥ नमिऊण नमिरतिदसिंदबिंदसिरिमउडलीढपयवीढं । सजिणे [सं] संय[ज] मसुरूवसंकित्तणं काहं संजमु सुरसत्थिहि पुअउ संजमु मोक्खदुवारु । जेहिं न संजमु मणि धरिउ तह दुत्तर संसारु संजमभारधुरंधरह सहुच्छलिउ न जाह । निअजणणीजुव्वणहरणु जम्मु निरत्थउ ताहं विरमणु पंचह आसवह इंदियनिग्गह जत्थ | सकसायहं दंडह दमणु सतरस संजमु तत्थ निग्घिण निठुर दुट्ठमण जे पाणि बहु करंति । आवज्जिअपावभर निच्छय नरय पडंति अलिउ म जंपहु दुव्वयणु पर दूमिज्जइ जेण । मु नरवइ नरइहिं गयउ अलिउब्भवदोसेण जड पाणई संसइ पडइ जइ निव्वाहु न अत्थि । तह वि अदिष्णु म संगहसि जं दूसिउ जिणसत्थि ज निव्विण्णउ दुहपचुरि निवसंतु संसारि । मेहुणसुहि सुमिणंतरण मण पसरंतु निवारि ૧૫૮ For Private And Personal Use Only ॥ ४६ ॥ 1180 11 ॥ १ ॥ ॥ २ ॥ ॥ ३ ॥ 118 11 ॥ ५ ॥ ॥ ६॥ 116 11 11 2 11
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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