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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ३ ॥ ॥ ४ ॥ ॥ ७ ॥ सामि ! अणाइअणंते, चउगइसंसारघोरकांतारे । मोहाइ कम्मगुरुठिइ, विवागवसओ भमइ जीवो ॥ २॥ पल्लोवमाइ अहा-पवित्तिकरणेण को वि जइ कुणइ । पलियअसंखभागूण-कोडिकोडि अयरठिइ सेसं तत्थ वि गंठी घणराग दोसपरिणइमयं अभिदंतो। गंठिए जीवो वि हहा, न लहइ तुह दंसणं नाह ! पहिलिय पिविलय नाएण, को वि पज्जत्तसण्णिपंचिदि । भब्वो अवड्ढपुग्गल परिअत्तावसेससंसारो ॥५॥ अपुष्वकरणमुग्गर-घायलिहियदुटुगंठिभेओ सो। अंतमुहुत्तेण गओ, नियट्टिकरणे विसुज्झंतो सो तत्थ रणे सुहडो व, वयरिजयजणियपरमआणंदं । सम्मत्तं लहइ जीवो, सामण्णेण तुह पसाया तं चेगविहं दुविहं, तिविहं तह चउविहं च पंचविहं । तत्थेगविहं जं तुह-पणीयभावेसु तत्तरूइ दुविहं तु दव्वभावा, निच्छं ववहारओ वि अहवा वि । निस्सग्गुवएसाओ, तुहवयणं विऊहिं निद्दिळं ॥९॥ तुह वयणे तत्तरुई, परमट्ठमजाणओ वि दव्वगयं । सम्मं भावगयं पुण, परमट्ठवियाणओ होइ ॥१०॥ निच्छयओ सम्मत्तं, नाणाइमयप्पसुहपरिणामो । इयरं पुण तुह समये, भणियं सम्पत्तहेऊहिं ।। ११॥ जल वत्थ मग्ग कुद्दव जराइ नाएण जेण पण्णत्तं । निसग्गुवएसभवं सम्मत्तं तस्स तुज्झ नमो || १२ ॥ तिविहं कारग-रोअग दीवगभेएहिं तुहमयविऊहिं । खाओवसमो-वसमिय-खाइयभेएहिं वा कहियं ॥ १३ ॥ ॥ ८ ॥ cu For Private And Personal Use Only
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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