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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥१४॥ ॥ १५ ॥ ॥१६॥ ॥१७॥ ॥१८॥ ॥१९॥ जं जह भणियं तुमए, तं तह करणम्मि कारगो होइ । रोअगसम्मत्तं पुण, रुइमित्तकरं तु तुह धम्मे सयमिह मिच्छट्ठिी, धम्मकहाईहिं दीवइ परस्स। दीवगसम्मत्तमिणं, भणंति तुह समयमईणो अपुवकयति पुंजो मिच्छमुइण्णं खवित्तु अणुइण्णं । उवसामिय अणियट्टि-करणाउओ परं खओवसमी अकयतिपुंजो ऊसर, दवईलिय दड्ढरुक्खनाएण। अंतरकरणुवसमिओ, उवसमिओ वा ससेणिगओ मिच्छाइखए खइओ, सो सत्तगखीणि ठाइ बद्धाऊ । चउतिभवभाविमुक्खो, तब्भवसिद्धी वि इयरो वा . चउहाओ सासाणं गुडाइवमणु व्व मालपडणु व्व । उवसमिओ उ पडतो, सासाणो मिच्छमपत्तो वेयगजुअ पंचविहं, तं च तु दुपुंजखयम्मि तइयस्स । खयकालचरमसमए, सुद्धाणुवेयगो होइ अंतमुहत्तोवसमो, छावलिय सासाण वेयगो समओ। साहिय त्तित्तीसायर, खइओ दुगुणो खओवसमो उक्कोसं सासायण, उवसमिया हुंति पंच वाराओ। वेयग खयग इक्कंसी, असंखवारा खओवसमो बीयगुणे सासाणो, तुरियाइसु अट्ठिगार चउ चउसु । उवसमग खइग वेयगं, खाओवसमा कमा हुति तिसुद्धि लिंग लक्खण, दूसण भूसण पभावगागारा । सद्दहण जयण भावण, ठाण विणय गुरुगुणाईयं वित्थारं तुह समया, सया सरंताण भव्वजीवाणं । सामिय तुहप्पसाया, हवेउ सम्मत्तसंपत्ति ॥ २० ॥ ॥ २१ ॥ ।। २२ ॥ ॥ २३॥ ॥ २४ ॥ ॥ २५ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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