SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 241
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥४८॥ ॥४९॥ ॥ ५० ॥ | ५२॥ ।। ५३॥ पाणंगुवि दुद्धाइ इह, सव्विहि इट्ठउ भक्खु । लोहिय हड्ड प्पभिइ पुणु, किण कारणिण अभक्खु बहुह वि एगिदियहं बहु न पलासण सम रुद्द । घण कोडा कोडिवि जलह, किं अवहरइ समुदु जो काऊण वि ज्झाणु तवु, मंसासणि मणु देइ । सो गउ जिम्व मज्जेवि लहु, तणु रेणुहिं गुंडेइ सव्विहिं तिथिहिं जत्तकय, सव्वई दाणइं दिण्ण । जिण आजम्मु दि आयरिय, मंस निवित्ति पइण्ण अन्तमुहुत्त परेण जहिं, सुहुमह जीवहँ रासि । सम्मुच्छहिं तं असिउ भण, लोणिउ माथरि पासि एगस्सवि जीवह वहणि, जायइ पाव बहुत्तु । ता जिय पिंड सरूवु इहु, बुह भक्खणह अजुत्तु एगह निय जीवह तणिण, जे जिय कोड़ि वहति । ताहं अणंता भव गहणि, जम्मण मरण हवंति जइ पच्चउ जिणवर वयणि, तुहु जइ कज्जु सुहेहि। तां होइवि करुणा परमु, मा लोणिउ भक्खेहि बहु जिय घण घा उब्भवउं लाला जेम्व विलीणु । किम भक्खइ मक्खिउ वि बहु सुस्सावउ सुकुलोणु इक्किक्कहु कुसुमहु पियवि, रसु मक्खिय जु वमंति । महु उच्चिट्ठउ सिट्ठ-जणु, तं दूरिण उब्भं (?ज्झं) ति उसह कएवि जु भक्खियउ, नरयह कारणु होइ । तसु परिणामि सु दारुणहु, महु सम्मुहु वि म जोइ सुहि महुरं नयणहं सुहउं, अइ कसुयं परिणामि । हालाहलु जिम्व परिहरहु, महु इम भणइ सुसामि || ५४ ॥ ॥ ५५॥ ॥५६॥ ॥ ५८॥ ॥ ५९॥ ૨૩૨ For Private And Personal Use Only
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy