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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org खमुदमु - संजमु-तव-नियमु, विहलइ सयलु वि मज्जु । मोहइ वियलइ इंदियई, हालाहलु जिम्व सज्जु Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मइरा मइ मोहिय मइहिं, जायव कुमर वरेहिं । दीवाणु खलियारियउ, बहु दुवयण पहरेहिं दे वो हुइण सकोवणिण, धण जण कणय समिद्ध । तेण सदड्डी वारवइ, तइलोक्के वि पसिद्ध जो मज्जह चुलउ वि पियइ, सज्जिर अणुवहु जंतु । भव सायर गंभीरि चिरु, सो मज्जइ मज्झंतु दुग्ग पहि थिरु संबल, दीसंतउ बीभच्छु । मायंगह अविसेसयरु, मंसु न खाइ जु सच्छु कथा यत्तु जु वण्णियइ, सुर भोयह तम सब्बु । गंसु जु भक्खरं नर तिरिय, निग्विण ताह नसच्चु जसु खाएवा मंसु मइ, डाइणि जिम्व अइ किच्छ । दिउ दिउ जीवउ, मारेवा तसु इच्छ सव्वुवि जिउ सुक्खइ, महइ, तइ कउ विण धम्मेण । सो सव्वत्थ विवणियइ, सिज्झइ दय करणेण जे रसणि[इं] दिय लंपडा, मंसासणि आसत्त । ते हिंसक प्पलया सरिस, अइ दूरिण परिचत्त भक्खत्ता इर वत्थजण, सत्थ निबंधण दिट्ठ । तिण संसत्त अनंत जिउ, मंसु न खाइ विसिट्ठ कह मण्णह इत्थि तण, तुल्लइ माइ पियाहं । भिण्णउं भिण्णउं आयरणु, जुत्तेउं होइ पियाहं तेजु केइवि इउ भणहिं, धण्णु वि पाणिहि अंगु । मंसु वि तंपिव भक्खणिउं, एउ न जुत्तिर्हि चंगु ૨૩૧ For Private And Personal Use Only ॥ ३६ ॥ ॥ ३७ ॥ ॥ ३८ ॥ 11:38 11 ॥ ४० ॥ ॥ ४१ ॥ ॥ ४२ ॥ ॥ ४३ ॥ ॥ ४४ ॥ ॥ ४५ ॥ ॥ ४६ ॥ ॥ ४७ ॥
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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