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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥४॥ ॥ ७ ॥ ॥ ८ ॥ सयमिच्छ पसत्था जा पयासिया अत्थउ गणहरेहिं । विहिया दुवालसंगी सपरेसि सुत्तउ विहया तत्थायारो रोविय पंचविहायार वत्थुवित्थारो । विस्थारिया मुणि-गणि-गणसारो संसारमवहरउ सूयगडो सुत्तिय सुत्त सियवडो पवर-वयण-फल-गमउ। भवजलहिपारगामी जसहइ सत्ताण पोउच्चा नीसेस पयत्थाण ठाणं ठाणपहाणमिह नाणं । वंदेह समवायं पडिहय-संदेह-समवायं तं नमह पंचमंगं जं नमिउं पंचमं गई जीवो। पावइ पावखयाउ भगवइ नामं च नामं च नायाधम्मकहाउ कय भवविरहाउ नियवाहाउ। हरिसुल्लसंत पुलउ वंदेहमुवासगदसाउ तह अंतगडदसाउ अणुत्तरोववाइयाणदसाउ । पण्हावागरणंगं जयइ जणे जणियभवभंग सुह-दुह-विवाग-सूयग-मित्तो दसमं विवागसुयमंगं । हयसेण दुट्ठ-दिट्ठि-प्पवाय सह दिट्टिवायं च उप्पायसुद्धमग्गेणियं च विरियाणुवायमिह तइयं । अस्थिण्णत्थिपवायं नाणपवायं च पंचमयं सच्चप्पवाय-मायप्पवाह कम्मप्पवायमट्ठमयं । पच्चक्खाणं विज्जाणु-वाय कल्लाणनामं च तह पाणाउं किरिया-विसालमह लोगबिंदुसारं च । उववाइय रायपसेणइज्ज जीवाभिगम नामं पण्णवणोवंग सूर-चंदपण्णत्ति-जंबूपण्णत्ति । वंदामि निरियावलिया सुयखंधं चेह पंचण्हं ॥ १० ॥ ॥११॥ ॥ १२ ॥ ॥ १३ ॥ ॥१४॥ ॥ १५ ॥ ૧૯૮ For Private And Personal Use Only
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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