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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इह जे जिणवीरेणं सयं च पव्वाविया य सिक्खविया। तेहि कयाई चउदस-सहसाणि पइण्णगाणं च ॥१६॥ दसवेयालिय-मावस्सयं च तह ओह-पिंड-निज्जुत्तिं । पज्जुसण-कप्पयकप्प कप्प पणकप्प जियकप्पो ।। १७ ।। वंदे महानिसीहं उत्तरज्झयणे वायगकयाणि । पसमरइ-पमुह-पयरण पंचसयाई महत्थाणि ।। १८ ॥ जुगपवरागम हरिभद्दसूरि रइयाणि चउदस-सयाणि । सद्धम्म-सत्थमत्थय-मणिपयरण-पभिइ चित्ताणि ॥ १९ ॥ नंदि-मणुओगदरप्प सुहं सुत्तमित्थ सुमहत्थं । अत्थि सुपसत्थ वित्थर भणण समत्थं पसत्थं च || २० ॥ आसज्जतं मणवज्जं जुगपहाणागमेहि सूरिहि । गुणगणभूरीहिं कयं वंदे तं पयरणाई वि ॥ २१ ॥ जुगपवर-गुरु-जिणेसरसूरीहिं अभयदेवसूरीहिं । सिरिजिणवल्लहसूरीहिं विरइयं जमिह तं वंदे ॥ २२॥ कलिकाल-कुमुइणी-वणसंकोयणकारि सूर-किरणव्व । इह सुत्तासुत्तपया व भासणुल्लासिणो जेसिं ॥ २३॥ ठाणट्ठाण-ट्ठियमग्ग नासि संदेहि मोहतिमिरहरा । कुग्गहिवग्गकोसियकुलकवलिय लोयणालोया ॥ २४॥ तेहिं पभासियं जं तं विहडइ नेय घडइ जुत्तीए। वंदे सुत्तं सुत्ताणुसारि संसारिभयहरणं ॥ २५ ॥ गुरु-गयणयल-पसाहण-पत्त पहो पयडिया समदि सोहो। हय सिवपह-संदेहो कय भव्वंभोरुहविबोहो ॥ २६॥ सूरूव्वसूरि जिणवल्लहो य जाउजए जुगपवरो । जिणदत्त-गणहर-पयंत-प्पय पणयाण होई फुडं ॥ २७ ॥ ૧૯ For Private And Personal Use Only
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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