SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एएण मण्णामि अहं कयत्थो, जं पाविओ सिवपुरमग्गसत्थो । जिणिंदभणिओ धम्मो पसत्थो, संसारजलहीतरणे समत्थो ॥ १९ ॥ भत्तिब्भरो नामसिरो सया हं, विण्णत्तियं परमिट्ठीण काहं । पत्थेमि वत्थु इह किंचि नाहं, भवे भवे दितु सुबोहिलाहं ॥ २० ॥ खमावणं सव्वजीवाण खमणं, आलोयणाई चउसरणगमणं । अणसणं पच्चक्खाणकरणं, अंतम्मि मे हुज्ज समाहिमरणं ॥ २१ ॥ जे भावणाए कुलयं पठंति, एयं सचित्ते परिभावयंति । आणं जिणंदाण सया कुणंति, ते झत्ति निव्वाणसुहं लहंति ॥ २२ ॥ ॥ २ ॥ पू. आ. श्री रत्नसिंहसूरिविरचितम् ॥हितशिक्षा कुलकम् ॥ जइ जीव ! तुज्झ सम्म परलोयपयाणयं वसइ हियए। ता धम्मम्मि पमाओ होज्ज मणागं पि न कयावि मणमोहणविज्जाहि रत्ताण गुरुम्मि जाम बहुमाणो। धित्तेसिं बहुमाणो जइ नो संवेगरंगाओ मण नयणह अनुजीह क्रिय तीहं विरलीकरेसु । संजमवंतु सुवासणउ जउ मुणि कोइ कहेसु किरियपरायण बहुय मुणि दीसहिं वेसु धरंत । विरला केइ सुवासणा जे रंजहिं पुण संत जाणंता अगहिल्ला कह भुल्लाइं दियालजियलोए । विसएहिं भोलिया अह मह वयणं ही कुणंतु कहं? अज्ज वि किंपि न नटुं जइ चेयसि हंदि किंपि अप्पाणं । विलवणमेत्तट्ठिओ पुण अरण्णरुण्णं समायरसि ॥३ ॥ ॥४॥ ॥ ५ ॥ ॥ ६ ॥ ago For Private And Personal Use Only
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy