SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 11811 देवो जिणो साहु गुरू पसत्था, तत्ताइं जीवाइनवपयत्था । मत जे केइ नरा कयत्था, अच्छंतु ता पंचमहव्वयत्था धण्णा मुणी जे चइऊण गेहं तवेण उग्गेण दमंति देहं । न मण्णियं पुत्तकलत्तनेहं, बहुमाणसारं पणमामि ते हं मायापियाबंधवसयणविंदं, लह उज्झियं घरवावारदंदं । उम्मूलियं मोहणवल्लिकंद, नमामि तेसिं चरणारविंद पुर्व्विपि जे के गिहगुत्तिलोणा, घित्तुं वयं गुरुकुलवासलीणा । अमुच्छियाऽगिद्ध अदीणवयणा, कालोचिया जे पालंति जयणा ॥ १० समिसमिया तिगुत्तिगुत्ता, सज्झायज्झाणेसु सयाऽणुरत्ता । संविग्गचित्ता विकहाविरत्ता, न मोहपंके मणयं पि खुत्ता ॥ ११ ॥ न मोट्टया इंदियतक्करेहिं, न विद्धया मयरद्धयस रेहिं । न खोभिया दुट्टपरीसहेहि, न गंजिया कोहाइयभडेहि अट्टाई रुद्दाई परिच्चयंति, धम्माई सुक्काई समायरंति । नवाई कम्माई न बंधयंति, पुविल्लयाई तवि झोसयंति तेर्सि नमो दुक्करकारयाणं महव्वयादुद्धरधारयाणं । जिणागमे सुद्धपरूवगाणं, विसुद्धचरणे करणे रयाणं अहं पि पुर्वि गिहवासलीणो, सुसाहुधम्मे विमले न लीणो । इहि पुणो वयबलसत्तिहीणो, चिट्ठे जहा जलविरहम्मि मीणो ॥ १५ जाणंतओ भोगसुहे अणिच्चे, घारेअरे दुहभरिए अनिच्चे । न लग्गओ दुविहे धम्मकिच्चे, ठिओ अहं कुड्डकवाडविच्चे ॥ १६ ॥ आसापिसाएण धरेवि मुक्को, मणोरहो साहु मणम्मि चुक्को । कायावराहो विगिहे निलुक्को, चिट्ठे जहा वानर डालचुक्को ॥ १७ ॥ ॥ १४ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अहसंकिलिट्ठा विसया अणिट्ठा, करंडए छूढभुयंगपुट्ठा । मोहंधयोरेहिं झडत्ति दड्ढा, अम्हारिसा जग्गंता वि मुट्ठा १५८ For Private And Personal Use Only ॥ ७ ॥ ॥ ८ ॥ ॥ १२ ॥ ॥ १३ ॥ ॥ १८ ॥
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy