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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ७ ॥ ॥ ८ ॥ ॥९॥ कण्णि धरेविणु दिण्ण मई इय सक्खिय लोइ । हं केण वि न हु जग्गविउ मन जंपसि परलोइ चिंतहिं हियडं दज्झिसइ पच्छायावु करेसि । होसइ कांइवि नेव तुहु पर हत्थड़ा म लेसि एएहिं वि वयणेहिं तुह जिय ! मण्णे न भावसब्भावं । जा नेव पुलइयंगो रेल्लसि अंसूहि महिवलयं जस्स मणदप्पणम्मी भावत्थो फुरइ एयभणियस्स। सो देवाण वि पुज्जो किं पुण मणुयाण जियलोए ? गिरिसिहरग्गिहि वरसियइ रहइ न पाणिउ जेव । पत्थर-सरिसह नीरसह कहिउ सुणिज्जह तेव वयणेणं भणियमिणं तरामि नो सिक्खिउं च बेडाए। सिरि धम्मसूरि सीसो जंपइ एयं रयणसूरी ॥१०॥ ॥ ११ ॥ ॥ १२ ॥ ॥ १ ॥ पूर्वाचार्यमहर्षिकृतम् ॥त्रिषष्टिध्यानकथानककुलकम् ॥ नमिऊण महावीरं, वुच्छं तेवट्ठिअसुहझाणाणं । आहरणसंगहमिणं, सुमरणहेउं गुरुवएसा अण्णाणझाणम्मी[म्मि] दिटुंतो असगडपियपुव्वभवो। अणायारझाणम्मी [म्मि] वल्लरझाणी य कुंकणउ कुदंसणम्मि सोरठ-सावयदेवो पवण्णमिच्छत्तो । कोहे पालगसासग-नालीयमाई उदाहरणा माणम्मि उ बाहुबली, विस्सभूई य संगमो देवो। मायाए धणसिरिया, भाउज्जायं परिक्खंती ॥ २ ॥ ॥४ ॥ ૧૧ For Private And Personal Use Only
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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