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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जम्हा दंसणनाणा संपुण्णफलं न दिति पत्तेयं । चारित्तजुआ दिति हि विसिस्सए तेण चारित्तं एवं ववहाराउ बलवन्तो णिच्छओ मुणेयव्वो । एगमयं ववहारो सव्वमयं णिच्छओ वत्ति अहिया जर तुह किरिया अहियं नाणं पि तस्स हेउ त्ति । कारणगुणाणुरूवा कज्जगुणा णेव विवरीया Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अह जइ सव्वणयमयं विणिच्छओ इगमयं च ववहारो । तो सो सलादेसो विगलादेसो कहं होउ मुक्खामुक्खविभागो इच्छामित्तेण णत्थि एगंतो । जइ अत्थि तो वि नाणे चरणं सारो ति तं मोक्खं सव्वणयमयत्तं पुण सव्वेसिं संमओ जओ विसओ । णय णिच्छयस्स तेणं सयलादेसत्तमेगस्स जेणं सलादेसो अभेयवित्तीइ णिच्छयाधीणो । तेणेव सो पमाणं न पमाणं होइ ववहारो वा विबलं कस्सइ णेगंतियं हवे तं पि । एगस्स मुक्खभावे णियमा अवरोवयारो ति णिच्छयणयस्स विसयं भावं चिय जे पमाणमाहंसु । तेसि विणेव हेउं कज्जुप्पत्तीइ का मेरा खाओवसमिगभावो सुद्धो हेउ सुहस्स खइअस्स । तब्भावेण कया पुण किरिया तब्भाववुड्डिकरी धिइसद्धासुहविविइसविण्णत्ती तत्तधम्मजोणित्ति । तल्लद्धधम्मभावा वड्ढइ भावंतरं तत्तो एवं पवभावो कमेण गुणठाणसेढिमारुहिय । पक्खीणघाइकम्मो कयकिच्चो केवली होइ S For Private And Personal Use Only ॥ ६० ॥ ॥ ६१ ॥ ॥ ६२ ॥ ॥ ६३ ॥ ॥ ६४ ॥ ॥ ६५ ॥ ॥ ६६ ॥ ॥ ६७ ॥ ॥ ६८ ॥ ॥ ६९ ॥ || 90 || ॥ ७१ ॥
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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