SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir णिच्छयओ सकयं चिय सव्वं णो परकयं हवे वत्थु । परिणामावंझत्ता ण यवंझं दाणहरणाइ दिन्तो व हरन्तो वा ण य किञ्चि परस्स देइ अवहरइ । देइ सुहपरिणामं हरड़ व तं अप्पणो चेव धम्मो व सुहं वा परस्स देयं ण यावि हरणिज्जं । कयणासाsकयभोगप्पमुहा दोसा फुडा इहरा भत्ताइपोग्गलाण विण दाणहरणाइ होइ जीवस्स । इतं संचिय हुज्जा तो दिज्जा वा अवहरिज्जा जोगवसेणुवणीया इट्ठाणिट्ठा य पोग्गला जे हु । अण्णा ते जीवाउ जीवो अण्णो अ तेहिन्तो तम्हा सपरविभागो पोग्गलदव्वम्मि णत्थि णिच्छयओ । भोगाभोगविसेसा ववहारा चेव सपरत्तं पुणपडीण उदए भोगो भोगंतरायविलएणं । जइणियवित्तेणं चिय तो भोगो किण्ण किविणाणं जो परदव्वम्मि पुणो करेइ मूढो ममत्तसंकप्पं । सो कह आयसहावं गिद्धो विसएसु उवलहइ णाहं होमि परेसिं ण मे परे णत्थि मज्झमिह किंची । इय आयभावणाए रागद्दोसा विलिज्जन्ति तो परिणामाउ च्चिय बन्धो मोक्खो व णिच्छयणयस्स । गंतिया अणच्चंतिया पुणो बाहिरा जोगा सिद्धी णिच्छयओ च्चिय, दोण्हं संजोगओ अ छेयत्तम् । कत्थइ दोह वि उवओगो तुल्लवं चेव तुमवेक्खाणियमा समुदायजोगमहिगिच्च । किरिया विसिस्सए पुण नाणाउ सुए जओ भणियं For Private And Personal Use Only ॥ ४८ ॥ ।। ४९ ।। 1140 11 ॥ ५१ ॥ ॥ ५२ ॥ ॥ ५३ ॥ ॥ ५४ ॥ ॥ ५५ ॥ ॥ ५६ ॥ ॥ ५७ ॥ 1142 11 ॥ ५९ ॥
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy