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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ७२ ॥ ॥ ७३ ॥ ॥७४ ॥ ॥ ७५ ॥ ॥७६ ॥ ॥७७॥ नणु जइ सो कयकिच्चो अट्ठारसदोसविरहिओ देवो । ता छुहतहाभावा जुज्जइ कम्हा कवलभोई तो सक्का वुत्तुं जे छुहतण्हाई जिणस्स किर दोसा। जइ तं दूसेज्ज गुणं साहावियमप्पणो कवि दूसइ अव्वाबाहं इय जइ तुह सम्मओ तयं दोसो। मणुअत्तणं वि दोसो ता सिद्धत्तस्स दूसणओ अह जइ जिणस्स खइअं सुक्खं दुक्खं विरुज्झए तेणं । तो सामण्णाभावे विसेससत्ता कहं जुत्ता ? तो वेअणिज्जकम्मं उदयप्पत्तं कहं हवे तस्स ? | ण य सो पदेसउदयो समयम्मि विवागभणणाउ आवस्सयणिजुत्तीइ पयडिपसत्थोदयोवएसेणं । णज्जइ ता सुहयाउ असुहप्पडिवक्खवयणेणं तत्तत्थसुत्तभणिया एक्कारस जं परीसहा य जिणे । तेणवि छुहतण्हाई खइअस्स सुहस्स पडिकूलं अस्सायवेअणिज्जं छुहतण्हाईण कारणं जाण । पज्जत्तिसत्तितदुदयजलितंत्तज्जलणदित्ताणं । नणु छुहतण्हा तण्हामोहुदउप्पत्तिआ रिरंस व्व। भण्णइ अण्णा तण्हा अण्णं दुक्खं तयटुं ति मोहाभिणिवेसेणं चउहि वि उमकोट्ठयाइहेऊहिं । पगरिसपत्ता तण्हा जायइ आहारसण्ण त्ति असणाइम्मि पवित्ति एत्तो च्चिय तं विणा सुसाहूणं । ण जहुत्तविहिविहाणे अइआरो हंदि णिद्दिट्ठो एयं विणा ण भुत्ती मेहुणसण्णं विणा जद अबंभं । एय वयणं पि परेसिं एएण पराकयं णेयं ॥ ७८ ॥ ॥ ७९ ॥ ॥ ८० ॥ ॥ ८१ ॥ ।। ८२ ॥ ॥८३॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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