SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ २१॥ ।। २२॥ ।। २४॥ ॥ २५ ॥ ।। २६ ।। कम्मस्स य पुण उदए अवराहो होइ नेव तव्विरहे। इय जाणिऊण सम्म मा कुज्जा संजमे अरुइं अपमत्तपमत्तेसुं अंतमुहुत्तं जहक्कमं कालो। समणाण पुव्वकोडी ता लब्भइ कह ण एगविहं पढमे य पंचमंगे य वियारिए इत्थ होइ सुहबुद्धी । ता आलंबिय भाउय ! एगपयं गच्छ मा मिच्छं साहूणं विणएणं वयणपरेणं च तह य सेवाए। समणोवासगनामं लब्भइ न हु अपणहा कह वि जो सुणइ सुगुरुवयणं अत्थं वावेइ सत्तखित्तेसु । कुणइ य सदणुट्टा(ट्ठा)णं भण्णइ सो सावओ तेण जं निज्जइ जिणधम्मं जं लब्भइ सुत्त-अत्थपेयालं । सो पुण साहुपसाओ ता मा होहिसि कयग्घेण सव्वा सामायारी उवएसवसेण लब्भइ मुणीणं । सा पुण सुंदरबुद्धी कीरइ जं अणुवएसेण संभिण्णसुयस्सऽत्थं सुसंजओ वि हु न तीरए कहिउं । ता तुच्छमई सड्ढो कह होइ वियारणसमत्थो केवलमभिण्णसुयं मण्णिज्जइ विवरणासमत्थेहिं । तं पुण मिच्छत्तपयं जह भणियं पुव्वसूरीहिं अपरिच्छियसुयनिहस्स केवलमभिण्णसुत्तचारिस्स । सव्वुज्जमेण वि कयं अण्णाणतवे बहुं पडइ केई भणंति इण्हेिं सुसावया संति इत्थ नो साहू। तं पुण वितहं जम्हा न हु कोई कामदेवपए सिरि सुहमसामिणा जं सुत्तम्मि परूवियं तहच्चेव । साहुपरंपरएणं अज्ज वि भासंति भवभीरू ॥ २७॥ ॥ २८॥ ॥ २९ ॥ ॥३०॥ ॥ ३१ ॥ ॥ ३२॥ ૧૨૦ For Private And Personal Use Only
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy