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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जं अण्णाणी कम्मं खवेइ बहुयाहि वासकोडीहि । तं नाणी तिहिं गुत्तो खवेइ ऊसासमित्तेण तं पुणविणयाणुगुणं सप्पुरिसाणं हवेइ सुहहेऊ । अविणीयस्स पणस्सइ अहवा वि विवड्ढए कुमई आयरियाण समासे सुत्तं अत्थं गहित्तु नीसेसं । तेसि पुण पडिणीओ वच्चइ रिसिघायगाण गई जाणता विविणयं केई कम्माणुभावदोसेणं । नेच्छंति परंजिता अभिभूया रागदोसेहिं संपइ केई सड्ढा अलद्धगुरुणो वयाइउच्चारं । कारिति परजणाणं हीही धित्तणं तेसिं धम्मो दुवालसविहो सुसावयाणं जिणेहि पण्णत्तो । साहु-अभावा सो पुण इक्कारसहो हवइ तेसिं इह अतिहिसंविभागो सुसाहूणं चेव होइ कायव्वो । सामण्णनाणदंसणवुढिकए परमसहि Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 जे पुण सड्ढाण च्चिय बारसमवयं पुणो परुर्विति । कारिति य अप्पेच्छा ते णेयव्वा अहाच्छंदा केई सुबुद्धिनायं परिभाविय पण्णविति उच्चारं । कारंति य सा सुंदरबुद्धी न हु होइ निउणमई जं पुण सुगुरुसमीवे सुबुद्धिणा गहिय - देसियं धम्मं । तेण समं समसीसी अलद्धगुरुणो न ते होइ जे पुण अलद्धगुरुणो जहा तहा कारविंति उच्चारं । ते जिमइ (य) पडिणीया न हुंति आराहगा कह वि साहीणे साहुजणे गिहीण गिहिणो वयाइं जो देइ । साहुअण्णाकरणा सो होइ अनंतसंसारी १२१ For Private And Personal Use Only ॥ ३३ ॥ ॥ ३४ ॥ ॥ ३५ ॥ ॥ ३६ ॥ ॥ ३७ ॥ ॥ ३८ ॥ ॥ ३९ ॥ 1180 || ॥ ४१ ॥ ॥ ४२ ॥ ॥ ४३ ॥ ॥ ४४ ॥
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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