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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir नाम ११शतके उशा११ // 989 // // 981 फलथी परिपूर्ण हस्तवाला ते बल राजाए अतिशय विनयपूर्वक ते स्वप्नलक्षणपाठकोने आ प्रमाणे कर्जा-'हे देवनुप्रियो ! ए प्रमाणे माख्या- खरेखर आजे प्रभावती देवी ते तेत्रा प्रकारना वासगृहमां यावत् स्वप्नमां सिंहने जोइने जागेली छे, तण्णं देवाणुप्पिया! यस्स ओरालस्स जाव के मन्ने कल्लाणे फलवित्तिबिसेसे भविस्सह ?, तर णं सुविणलक्खणपाडगा यलस्स रन्नो अंतियं एपमटुं सोचा निसम्म हह तुहतं सुविणं ओगिण्हइ. 2 ईहं अणुप्पविसह अणुप्पविसित्ता तस्स मुविणस्स अत्थोगहणं करेइ तस्म० 2 त्ता अनमनेणं सद्धिं संचालेंति 2 तस्स सुविणस्स लहा गहियट्ठा पुच्छियट्ठा विणिच्छियट्ठा अभिगगट्ठा बलस्स रन्नो पुरओ सुविणसत्थाई उच्चारेमाणा उ० 2 एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं सुविणसत्थंसि यायालीसं सुविणा, तीसं महासुविणा बावत्तरि सव्वसुविणा विट्ठा, // तो हे देवानुप्रियो ! आ उदार एवा स्वप्ननुं यावद चीजु कयुं कल्याणरूप फल अने वृत्तिविशेष थशे. त्यार पछी ते स्वप्नलक्षणपाठको बल राजानी पासेथी ए वात सांभळी तथा अवधारी खुश अने संतुष्ट थई ते स्वप्न संचन्थे सामान्य विचार करे छे, सामान्य विचार करी तेनो विशेष विचार करे , अने पछी ते स्वप्नना अर्थनो निश्चय करे छे, अने त्यार बाद ते परस्पर साथे विचारणा करे छे. त्यार पछी ने स्वप्नना अर्थने स्वयं जाणी, बीजा पासेथी ग्रहण करी, ते संबन्धी शंकाने पूछी, अर्थनो निश्चय 18करी अने स्वप्नना अर्थने अवगत करी बल राजानी आगळ स्वमशास्त्रोनो उच्चार करतो तेओए आ प्रमाणे कछु-हे देवानुप्रिय! ए * प्रमाणे खरेखर अमारा स्वमशास्त्रमा बेताळीच सामान्य स्वमो, अने त्रीश महास्वमो मळीने कुल बहोंनेर जातना स्वमो कहेला छे. MEROLOGY For Private and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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