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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्या // 988 +ACH 4- रिया उबट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छन्ति तेणेव उवागच्छित्ता करयल बलराय जएणं विजएणं बद्धाति / तए पण मुविणलक्खणपाढगा बलेणं रना बंदियपूयसकारियसंमाणिया समाणा पत्तयं 2 पुवन्नत्थेसु भद्दामणेसुध निसीयंति, तए णं से बले राया पभावति देवि जवणियंतरियं ठावेह ठावेत्ता पुप्फफलपडिपुन्नहत्थे परेणं विणएणं उद्देशन IPIते सुविणलक्खणपाढए एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! पभावती देवी अन्न तमि तारिसगंसि वासघरंसि | PIReen 18 जाव सीहं मुविणे पासित्ता ण पडिबुद्धा _ 'हे देवानुप्रियो / तमे शीघ्र जाभो, अने अष्टांग महानिमित्तना सूत्र अने अर्थन धारण करनारा, अने विविध शास्त्रमा कुशल एवा स्वमना लक्षण पाठकोने बोलावो.' त्यार बाद ते कौटुंबिक पुरुषो यावत् आज्ञानो स्वीकार करीने बल राजानी पासेथी नीकळे के; नीकळीने सत्वर, चपलपणे, अपाटाबंध अने वेगसहित हस्तिनापुर नगरनी वचोवच ज्या स्वभलक्षणपाठकोना घरो छ, त्यो जइने स्वमलक्षणपाठकोने बोलावे . ज्यारे ते बल राजाना कौटुंबिक पुरुषोए ते स्वमलक्षणपाठकोने बोलाव्या त्यारे तेओ प्रसन्न थया, तुष्ट थया अने स्वान करी बलिकर्म करी यावत् शरीरने अलंकृत करी, मस्तके सर्षप अने लीली धरोनु मंगल करी पोत पोताना घेरथी | नीकळे छ, नीकळीने हस्तिनागपुर नगरनी बच्चे थइ ज्यां बल राजा उत्तम महालय छे, त्यां आवे छे, त्यां आवीने श्रेष्ठ महालयना | द्वार पासे ते स्वमपाठको एकठा थाय छे, एकठ थइने ज्या बहारनी उपस्थानशाला छे त्यां आवे छे, त्यां आवी हाथ जोडी बल राजाने जय अने विजयथी वधावे छे. त्यार बाद ते बल राजाए वांदेला, पूजेला, सत्कारेला अने सम्मानित करेला ते स्वमलक्षणपाठको पूर्व | गोठवेला भद्रासनो उपर बेसे छे. त्यार पछी ते बलराजा प्रभावती देवीने जवनिकानी-पडदानी अंदर केसाडे छे. त्यार बाद पुष्प अने 44 %ESS. For Private and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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