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________________ Shahawan Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagersun Gyarmandie प्राप्तिः // 987 // ते बल नरपति स्नानगृहथी बहार नीकळे छे, बहार नीकळीने ज्या बहारनी उपस्थानशाला छे त्यां आवे छे, त्यां आबीने पूर्व दिशा है। # सन्मुख उत्तम सिंहासनमा बेसे छे. त्यार बाद पोतानाथी उत्तरपूर्वदिशामां-ईशान कोणमां धोठा बखथी आच्छादित अने सरसव के बडे जेनो मंगलोपचार करेलो छ एषा आठ भद्रासनो मूकावे छे. त्यार बाद पोतानाथी थोडे दूर अनेक प्रकारना मणि अने रत्नथी उभार मुशोभित, अधिक दर्शनीय, कीमती, मोटा शहरमा बनेली, सूक्ष्म स्तरना सेंकडो कारागरोवाळा विचित्रताणावाळी, तथा ईहामृग अने | // 987 // | बळद वगेरेनी कारीगरीथी विचित्र एवी अंदरनी जवनिकाने-पडदाने खसेडे छे, खसेडीने (जवनिकानी अंदर) अनेक प्रकारना मणि अने रत्नोनी रचना वडे विचित्र, गादी अने कोमळ गालममूरीयाथी ढंकायेलु, श्वेत वस्त्रवडे आच्छादित, शरीरने सुखकर स्पर्शवाळु तथा दासुकोमळ ए, एक भद्रासन प्रभावती देवी माटे मूकावे . त्यार पछी ते बल रजाए कौटुंबिक पुरुषोने चोलाबी आ प्रमाणे का- 5 खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! अटुंगमहानिमित्तसुत्तत्वधारए विविहसत्यकुसले सुविणल क्वणपाढए | सद्दावेह, तए ते कोडेबियपुरिसा जाव पडिसुणेत्ता बलस्म रन्नो अंतियाओ पडिनिक्खमह पडिनिक्खमित्ता सिग्धं तुरिय चवलं चंड वेडयं हत्यिणपुर नगरं मज्झमज्झणं जेणेव तेर्सि सुविणलक्वणपाढगाणं गिहाई तेणेव उवागच्छन्ति तेणेव उवागच्छित्ता ते सुविणलक्खणपाढए सदाति / ताण ते सुविणलक्षणपाढगाबलस्स रन्नो कोडुबियपुरिसेहिं सहाविया समाणा हहतुट्ठ• पहाया कय जाव सरीरा सिद्धस्थगहरियालियाकयमंगलनुदाणा सरहिं 2 गिहेहितो निग्गच्छति स. 2 हथिणापुर नगरं मझमझेण जेणेव वलस्स रन्नो भवणवरवडेंसए तेणेव उवागच्छन्ति तेणेव उवागच्छित्ता भवणवरवडेंसगपडिदुवारंसि एगओ मिलंति एगओ मिलित्ता जेणेव बाहि. For Private and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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