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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बाईस यहां यह कह देना आवश्यक है कि स्फोटवाद नाम का एक अन्य ग्रन्थ भी मागेश के नाम से प्रसिद्ध है जिसमें अन्य भारतीय दर्शनों के प्रसंग में वैयाकरणों के स्फोटसिद्धान्त का गम्भीर परीक्षण एवं प्रतिपादन किया गया है । इस पुस्तिका में केवल स्फोट सिद्धान्त के विषय में ही विचार किया गया है जबकि वैसिम के व्यापक परिवेश एवं विपुल कलेवर में संस्कृत व्याकरण के प्राय: सभी विषयों का, स्फोटवाद के प्रतिपादन की दृष्टि से, विस्तृत विवेचन किया गया है। तीनों मंजूषा ग्रन्थों का प्रतिपाद्य- इन तीनों ग्रन्थों का प्रतिपाद्य अथवा विवेच्य विषय तथा उसका क्रम लगभग समान ही है पर जो थोड़ा बहुत भेद है वह इस प्रकार है। तीनों में ही प्रथम प्रकरण 'शब्दशक्ति' के निरूपण अथवा निर्णय से सम्बद्ध है परन्तु प्रकरण के प्रारम्भ में स्फोट की चर्चा की गयी है। वैसिम० में स्फोट से सम्बद्ध इस प्रारम्भिक अंश को 'वर्णस्फोटसामान्यनिरूपरण' नाम दिया गया है। 'वर्णस्फोट' का यह सामान्य निरूपण लम० तथा पलम० के प्रारम्भिक स्फोटनिरूपण की अपेक्षा पर्याप्त विस्तृत एवं कुछ भिन्न रूप में है। __ इसके पश्चात् तीनों में ही शक्ति (अभिधा), लक्षणा तथा व्यंजना वृत्तियों के विषय में विचार किया गया है । लम० तथा पलम० में 'व्यंजनानिरूपण' के पश्चात् पुनः स्फोट की अखण्डता आदि के विषय में विस्तार से विचार किया गया है। नाम के अनुरूप लम० में यह यह प्रसंग पर्याप्त विस्तृत है तथा पलम० में लम० की अपेक्षा संक्षिप्त । यद्यपि पलम० के इस प्रसंग में कुछ ऐसी बातें भी हैं जो लम० में नहीं हैं। शक्तिनिरूपण के पश्चात् लम० तथा पलम० में आकांक्षा, योग्यता, आसत्ति तथा तात्पर्य के विषय में विचार किया गया है। ये प्रकरण वैसिम में नहीं हैं। तीसरे प्रकरण के रूप में वैसिम० में 'धात्वर्थनिपातार्थनिर्णय:' का निर्देश मिलता है। लम० तथा पलम० में इन दोनों प्रकरणों का अलग अलग निर्देश किया गया है। लम० के भी किसी किसी हस्तलेख में इन दोनों प्रकरणों का एक साथ निर्देश है। चौथे प्रकरण का नाम वैसिम० तथा लम० में तिङर्थनिरूपण' है तथा पलाम० में 'दशलकारादेशार्थाः' । यह भी द्रष्टव्य है कि पलम० में इस प्रकरण के दो भाग हैं । प्रथम भाग में वैयाकरणों के अनुसार दशलकारादेशार्थ तथा दूसरे भाग में नैयायिकों के अनुसार लकारार्थ का विवेचन किया गया है। पलम० का यह प्रथम भाग वभूसा के 'लकारविशेषार्थनिर्णय' नामक प्रकरण का संक्षेप प्रतीत होता है। पलम० के इस प्रकरण के दूसरे भाग में नैयायिकों तथा मीमांसकों की दृष्टि से किया गया विवेचन वैसिम० तथा लम० में इसी रूप में नहीं मिलता। पलम के संक्षिप्त पायाम को देखते हुए यह अंश अनावश्यक सा लगता है । पाँचवें प्रकरण 'कृदर्थ-निरूपण' में वैसिम० तथा लम० में 'कृत्' प्रत्ययों के अर्थ के विषय में विचार किया गया है। पलम० में यह प्रकरण नहीं है । छठे प्रकरण में वैसिम० तथा लम० में 'नाम' अथवा 'प्रातिपादिक' शब्दों के अर्थ के विषय में विचार किया गया है। वैसिम० में इसे 'नामार्थनिरूपण' तथा लम० में For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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