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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इक्कीस इसी तरह डॉ० रामसुरेश त्रिपाठी ने नागेशभट्ट-कृत केवल दो मंजूषा ग्रन्थों का उल्लेख किया। वे हैं वैयाकरण सिद्धान्तमंजूषा तथा परमलघुमंजूषा । वैसिलम० का उन्होंने उल्लेख ही नहीं किया । सम्भवतः वे वैसिम० तथा वैसिलम० को एक मानना चाहते है । डा० त्रिपाठी ने यह भी लिखा है कि 'मंजूषा की कला टीका के पृ० ५३०, ५३५ पर गुरुमंजूषा का भी उल्लेख है"। इस लेख से यह प्रतीत होता है कि डा० त्रिपाठी के विचार में गुरुमंजूषा वैसिम० से कोई भिन्न ग्रन्थ है। परन्तु वस्तुस्थिति यह है कि वैसिम० को ही गुरुमंजूषा कहा गया है तथा कला टीका वैसिलम० से सम्बद्ध है। वैयाकरणसिद्धान्तमंजूषा का दूसरा नाम स्फोटवाद-वैयाकरणसिद्धान्तमंजूषा तथा वैयाकरणसिद्धान्तलधुमंजूषा की पुष्पिकाओं में "वैयाकरणसिद्धान्तमंजूषाख्यः स्फोटवादः" यह कथन मिलता है जिसका निर्देश ऊपर हो चुका है। इससे यह स्पष्ट है कि नागेश ने इस विशाल ग्रन्थ को वैयाकरणों के मौलिक सिद्धान्त स्फोटवाद के विस्तृत विवरण एवं प्रतिपादन के रूप में प्रस्तुत किया था। यह स्फोटवाद नाम केवल वैसिम० के लिये उपयुक्त है वैसिलम० के लिये नहीं, यह इन दोनों ग्रन्थों की विषयानुक्रमणी अथवा विषय-निर्देश से स्पष्ट है । सम्पूर्ण वैयाकरणसिद्धान्तमंजूषा, अपने दूसरे नाम स्फोटवाद की दृष्टि से, तीन प्रमुख भागों में विभक्त है। प्रथम भाग को 'वर्णस्फोट-निरूपणम्' नाम दिया गया है। इस भाग में शक्ति, धात्वर्थ, निपातार्थ, तिर्थ, सनाद्यर्थ, कृदर्थ, सुबर्थ, समासशक्ति, क्यजाद्यर्थ तथा तद्धितार्थ इन विषयों के विवेचन को स्थान दिया गया है तथा अन्त में "इति वर्णस्फोट-निरूपणम्" कह कर इस प्रथम प्रकरण को समाप्त किया गया है। द्वितीय भाग में सखण्डपदवाक्यस्फोट तथा अखण्डपदवाक्यस्फोट के विषय में विचार किया गया है। तृतीय भाग में जातिस्फोट का, जो व्याकरण दर्शन का अन्तिम एवं निष्कृष्ट सिद्धान्त है, प्रतिपादन करके ग्रन्थ का उपसंहार किया गया है। इस प्रकार प्रारम्भ से अन्त तक सम्पूर्ण ग्रन्थ में स्फोट का ही कथन होने से स्फोटवाद नाम यथार्थ ही है। वैसिलम० तथा पलम० के विषय-प्रतिपादन का क्रम लगभग समान होता हुआ भी ऐसा नहीं है। इसलिये वैसिलम० के लिये स्फोटवाद नाम भ्रम अथवा प्रमादवश ही मानना चाहिये। अतः यह मानना उचित ही है कि नागेश की दृष्टि में स्फोटवाद का ही दूसरा नाम वैयाकरणसिद्धान्तमंजूषा है। यों तो लघुमंजूषा में भी पूरा ग्रन्थ स्फोट का ही विवरण प्रस्तुत करता है परन्तु वहाँ केवल ग्रन्थ के प्रारम्भ में स्फोट की थोड़ी सी चर्चा है तथा शक्तिनिरूपण के पश्चात् म्फोट का प्रतिपादन एवं विवेचन एक पूरे प्रकरण में किया गया है। पर सारे ग्रन्थ को, वैसिम० के समान, साक्षात् स्फोट से सम्बद्ध नहीं किया गया है अथवा यों कहा जाय कि इन दोनों ग्रन्थों का स्फोट की दृष्टि से ग्रन्थकार ने विभाजन नहीं किया है । इसलिये यथार्थता तथा नागेश के अपने कथन की दृष्टि से वैसिम० को ही स्फोटवाद का नामान्तर मानना उचित है। १. द्र०-संस्कृतव्याकरणदर्शन, प्रथम अध्याय, पृ० ३२ । २. द्र०-वैसिलम० की समाप्ति का श्लोक; व याकरणनागेश: स्फोटायनऋषेर्मतम् । परिष्कत्योक्तवांस्तस्मै प्रीयताभपरमेश्वरः ।। For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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