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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बीस वैसिपलम० (प्रारम्भ)---शिवं नत्वा हि नागेशेनानिन्द्या परमा लघुः । वैयाकरणसिद्धान्तमंजूषा विरच्यते ।। अन्त "इति शिवभट्टसुत-सतीदेवीगर्भज-नागेश भट्टकृता परमलधुमंजूषा समाप्ता" । वैयाकरणसिद्धान्तल घुमंजूषा को वैयाकरणसिद्धान्तमंजूषा मानने को भ्रान्ति-- वैसिलम० के हस्तलेख' (सं० ३६३८४ तथा ३६२२७) की पुष्पिका में इस ग्रन्थ को वैयाकरणसिद्धान्तमंजूषा कहा गया है- "इति श्रीमदुपाध्यायोपनामक-सती-गर्भजशिवभटट-सूत-नागेश-कृतो वैयाकरणसिद्धांतमंजूषाख्यः स्फोटवादः" | लगभग इसी प्रकार का कथन वसिम० के हस्तलेख (सं० ३६८२७) की पुष्पिका में भी मिलता है - "इति श्रीमदुपाध्यायोपनामक-शिवभट्ट-सुत-नागेश भट्ट-कृतो वैयाकरणसिद्धान्तमञ्जूषाख्यः स्फोटवादः समाप्तः” । काशी संस्कृत मुद्रालय से बाबू वाराणसी प्रसाद द्वारा संवत् १६४३ में, हस्तलिखित शैली में प्रकाशित, वैसिलम० के प्रारम्भ तथा अन्त में उसका नाम लघुमंजूषा मिलता है । परन्तु इस संस्करण की पुष्पिका में इसे भी वैयाकरणासिद्धान्तमञ्जूषा कहा गया है.---"इति श्रीवैयाकरणसिद्धान्तमञ्जूषाख्यः स्फोटवादः समाप्तः" । इसी प्रकार, चौखम्बा संस्कृत सीरीज से १८२५-२७ ई० में प्रकाशित लघुमंजूषा के अन्त में भी उपर्युक्त वाक्य कुछ विकृत रूप में मिलता है-"इति श्रीवैयाकरणसिद्धान्तममंजूषाख्ये स्फोटवाद: समाप्तः” । स्पष्ट है कि इन सभी उल्लेखों में वैयाकरणसिद्धान्तलघुमंजूषा को ही वैयाकरणसिद्धान्तमंजूषा कहा गया है। परन्तु यह उल्लेख प्रमाद अथवा भ्रान्ति के कारण ही हुआ है क्योंकि वैसिम० तथा वैसिलम० दोनों सर्वथा भिन्न भिन्न ग्रन्थ हैं । इन दोनों को कथमपि अभिन्न नहीं माना जा सकता। सम्भवतः इन भ्रान्त उल्लेखों के आधार पर ही आज के कुछ मान्य विद्वानों को भी इस विषय में भ्रान्ति हो गयी। श्री पं० युधिष्ठिर मीमांसक ने कुञ्जिका तथा कला नामक टीकानों को वैयाकरणसिद्धान्तमंजूषा से सम्बन्ध' माना है, जबकि ये दोनों टीकायें वैसिलम पर लिखी गयी हैं। १. ये दोनों हस्तलेख वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय के सरस्वतीभवन के हैं। २. १०-इस संस्करण का अन्तिम पत्र; वाराणसीप्रसादस्य नियोगेन प्रयत्नतः । काशीसंस्कृतमुद्रायामङिकतोऽयं शिलाक्षरैः ।। ३. द्र०-संस्कृत व्याकरण शास्त्र का इतिहास, भा०२, प्रथम संस्करण, प० ३६६ । For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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