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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acharya Shri (टीका) यस्यां प्रतिपादं प्रथमं चतुर्थ पञ्चमं षष्ठं नवम दशमं चाक्षरं गुरु स्यात् पञ्चमैः पञ्चमैवणः प्राप्तो विश्रामो यया तथाभूता सा भगणादुत्तरं मगण-सगण-गुरुभिहेतुमि श्वम्पकमाला भवतीत्यर्थः । अत्र (s||ऽऽऽऽऽ)इत्येवं स्वरवर्णक्रमः ।। (प्रति०) आद्य-तुरीयं-प्रथम-चतुर्थ । अन्त्य दशमम् । उपान्त्यं नवमम् । लब्धविरामा प्राप्तविश्रामा भात्भगणात् । मसगैः-मगणसगण-गुरुभिः ।। (भाषा) जिसके प्रत्येक चरण का पहला चौथा पांचवाँ छठा नवाँ और दशवाँ अक्षर गुरु हो तथा पांचवें पांचवें अक्षर पर विश्राम हो भगण मगण सगण तथा एक गुरु से युक्त वह छन्द चम्पकमाला कहलाता है । इस के प्रत्येक चरण में- (susssss) इस प्रकार स्वरवर्ण .जानना चाहिए ॥१४॥ रुक्मवती (मणिबन्ध) अन्तिमवर्णन्यूनतया, चम्पकमालामेव पुनः । रुक्मवतीमूचुः कवयो,-ऽन्ये मणिबन्धं शुद्धधियः (अन्वयः) कवयः चम्पकमालामेव पुनः अन्तिमवर्गन्यूनतया रुक्मवतीम् उचुः, अन्ये शुअधियो मणिबन्धम ।। (टीका) प्रतिपादमन्तिमं वर्ण न्यूनीकृत्य भदत्वेत्यर्थः कवयः पुनश्चम्पकमालामेव रुक्मवतोम, अन्ये विद्वांसो मणिबन्धमुक्तवन्तः । अत्र प्रतिपादं गणा:- (sISSIS) इति ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020917
Book TitleVruttabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
PublisherShwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publication Year1929
Total Pages63
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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