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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acha (१३) (प्रति०) अन्तिमवर्णन्यूनतया अन्तिमवर्णाभावेन । ऊचुः उक्तवन्तः । शुद्धधिया विद्वांसः॥ (भाषा) चम्पकमाला के प्रत्येक चरण के अन्तिम अक्षर को हटा देने से कितनेक कवि 'रुक्मवती' और कितनेक मणिबन्ध कहते हैं ॥१५॥ दोधक. " पत्र गुरु प्रथमं च तुरीयं, सप्तमकं दशमं च ततोऽन्त्यम्। भत्रिक-गढयतः प्रतिपाद, दोधकवृत्तमिदं प्रतिपाद्यम् ॥१६॥ (अन्वयः) यत्र प्रथमं तुरीयं च सप्तमकं दशमं ततोऽन्त्यं च गुरु, इदं प्रतिपादंत्रिक-गद्वयतः दोधेकवृत्तं प्रतिपाद्यम ।। (टीका) यस्मिन् वृत्ते प्रथमं चतुर्थ सप्तमं दशममेकादशं चाक्षरं गुरु भवति तदिदं प्रतिचरणं भगणत्रय-गुरुद्वययोगेन दोध. कवृत्तं वक्तव्यम् । अत्र- (॥।॥5॥ऽऽ) इति स्वरवर्णक्रमः ॥ (प्रति०) यत्र-यस्मिन् । तुरीयं चतुर्थम् । अन्त्यम्एकादशम् । भत्रिकं भगणत्रयम् । गवयं-गुरुयुग्मम् । प्रतिपादप्रति चरणम् । प्रतिपाद्यं वक्तव्यम् ॥ (भाषा) जिस का पहला चौथा सातवां दशवां और ग्यारहवां अक्षर गुरु हो अतएव एक एक चरण तीन भगण भोर १ स्वार्थिकः कात्ययोऽत्र । For Private And Personal Use Only
SR No.020917
Book TitleVruttabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
PublisherShwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publication Year1929
Total Pages63
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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