SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org (११) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * (यस्यां सत्यां) मगणादुत्तरं तगणद्वयेन सह गुरुद्वयसंनिवेशात् सा कविवरे : शालिनी कथिता । अत्र प्रतिचरणम्- (ssssSssss) इत्येकादश स्वरवर्णा ज्ञेयाः ॥ ( प्रति०) तदेव =तथैव | अष्टमान्त्यः =नवमः । ह्रस्वतां=लघुत्वम् | याति=प्राप्नोति । तुयैः चतुर्भिः । अश्वैः =सप्तभिः । विश्रमे= विरामें । मात्= मगणात् । तताभ्यां=तगणाभ्याम् । ( भाषा) जिस के प्रत्येक चरण में छठा और नवाँ अक्षर लघु हो, तथा प्रथम अक्षर से लेकर चोथे, एवं पांचवें से लेकर सातवें अक्षर पर विश्राम हो, वह मगण लगा तगया के अनन्तर दो गुरुओं से प्रत्येक पाद की पूर्ति होने के कारण शालिनी नामक छन्द कहलाता है। इस के हर एक चरण में ( SSSSS155 55 ) इतने स्वर वर्ण होते हैं । १३ ॥ चम्पकमाला. आये तुरीयं पञ्चमंषष्ठं, यत्र गुरु स्यादन्त्यमुपान्त्यम् । पञ्चमवर्णैर्लब्धविरामा, भान्मसगैः सा चम्पकमाला || (अन्वयः) यत्र आद्य - तुरीयं पञ्चम- पष्ठम्, उपान्त्यम्, अन्त्यं गुरु स्यात् । पञ्चमवर्णैः लब्धविरामा साभात् मसगैः चम्पकमाला || १ आय तुरीयञ्चेत्यनयोः समाहारादेकवचनम् । २ चमच षचेत्यनयोः समाहारः । एवमीदृशस्थलेऽग्रेऽपि बोध्यम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020917
Book TitleVruttabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
PublisherShwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publication Year1929
Total Pages63
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy