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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२.४२] द्वादशोऽधिकारः ११५ नमस्तेऽद्भुतवीर्याय कौमारब्रह्मचारिणे । साम्राज्यश्रीविरक्ताय रक्ताय शाश्वतश्रियाम् ॥२९॥ नमोऽधिगुरवे तुभ्यं महते गुरुयोगिनाम् । नमस्ते विश्वमित्राय स्वयंबुद्धाय ते नमः ॥३०॥ अनेन स्तवनेनात्रामुत्र जन्मनि जन्मनि । महादातः प्रदेहि त्वं तपश्चारित्रसिद्धये ॥३१॥ ईदृशीं सकलां शक्ति भवदीयां भवद्गुणैः । सहबाल्येऽपि नो नाथ मोहारातिविनाशिनीम् ॥३२॥ इति स्तुत्वा जगन्नाथं जगत्त्रयबुधेडितम् । निजेष्टप्रार्थनां कृत्वा स्वनियोग विधाय च ॥३३॥ उपायं परमं पुण्यं नमःस्तुतिशतार्चनैः । तत्पादाब्जौ मुहुर्नत्वा ययुः स्वर्ग महर्षयः ॥३४॥ तदैव सामराः सर्व चतुर्णिकायवासवाः । सकलना महाभत्या स्वस्ववाहनमाश्रिताः ॥३५।। घण्टानादादिचिह्नौधैत्विा तत्संयमोत्सवम् । आजम्मुस्तत्पुरं भक्त्या महोत्सवशतैः समम् ॥३६॥ तत्पुरं तदनं मागाश्चारुध्य सुरसैन्यकाः । नभोभागं मुदा तस्थुः सकलत्राः सवाहनाः ॥३७॥ आदौ तं मुक्तिभर्तारमारोप्य हरिविष्टरे । संभूय वासवाः सर्वेऽभ्यषिञ्चन् परमोत्सवैः ॥३८॥ क्षीरोदाब्धिपयःपूर्णहेमकुम्भैर्महोन्नतैः । गीतनर्तनवाद्याद्यैर्जयकोलाहलस्वनैः ॥३९॥ पुनस्तं भूषयामासुर्जगत्रितयभूषणम् । दिव्यैरंशुकनेपथ्यैर्माल्यैस्ते मलयोद्भवैः ।।४।। तदा स मातरं स्वस्य महामोहात्तमानसाम् । बन्धूश्च पितरं दक्षं महाकष्टेन तीर्थकृत् ॥४१॥ विविक्तैर्मधुरालारुपदेशशतादिभिः । वैराग्यजनकैर्वाक्यैः स्वदीक्षायै ह्यबोधयत् ॥४२॥ आपको नमस्कार है ॥२८|| आप अद्भुत वीर्यशाली हैं, कुमारकालसे ही ब्रह्मचारी हैं, लौकिक साम्राज्य लक्ष्मीसे विरक्त हैं और शाश्वत मोक्षलक्ष्मीमें अनुरक्त हैं, अतः आपको नमस्कार है ॥२९॥ हे गुरुओंके गुरु, आपको नमस्कार है, हे योगियोंके पूज्य, आपको नमस्कार है, हे समस्त विश्वके मित्र, आपको नमस्कार है और हे स्वयं बोधिको प्राप्त हुए भगवन् , आपको नमस्कार है ॥३०॥ हे महादातः, इस स्तवनके फलस्वरूप आप इस जन्म में और परजन्मजन्मान्तरोंमें भी तप और चारित्रकी सिद्धिके लिए अपने गुणों के साथ हे नाथ, हमें भी बालकालमें मोहरूपी शत्रुको विनाश करनेवाली सम्पूर्ण शक्ति दीजिए ||३१-३२।। इस प्रकार वे देवर्षि लौकान्तिक देव तीन लोकके ज्ञानियोंसे पजित जगन्नाथ वीर प्रभुकी स्तुति करके, अपनी इष्ट प्रार्थना करके, अपना नियोग पूरा करके, नमस्कार, स्तुति और पूजनसे परम पुण्य उपार्जन करके और भगवान्के चरण-कमलोंको बार-बार नमस्कार करके स्वर्गलोक चले गये ॥३३-३४|| ___ उन लौकान्तिक देवोंके जाते ही चारों जातिके सभी देवगण घण्टानाद आदि चिह्नोंसे भगवानका संयमोत्सव जानकर अपनी-अपनी देवियोंके साथ अपने-अपने वाहनोंपर सवार होकर भक्तिके साथ सैकड़ों महोत्सवोंको करते हुए उस कुण्डपुर नगरको आये और उसके वनोंको और सर्व मार्गीको अवरुद्ध कर वे देव सैनिक अपनी देवियों और अपने वाहनोंके साथ हर्पित हो आकाश में ठहर गये ।।३५-३७।। सर्वप्रथम उन सब देवोंने मुक्तिके भर्तार उन वीर प्रभुको सिंहासनपर विराजमान करके क्षीरसागरके जलसे भरे हुए महाउन्नत कलशोंके द्वारा परम उत्सवसे, गीत नृत्य-वादित्र आदिसे, तथा जय-जयनादके कोलाहल पूर्ण शब्दोंके साथ उनका अभिषेक किया ॥३८-३९॥ पुनः त्रिजगत्के भूषणस्वरूप उन वीर प्रभुको उन्होंने दिव्य वस्त्र, आभूषण, और मलयाचलपर उत्पन्न हुई पुष्पमालाओंसे आभूषित किया ॥४०॥ तत्पश्चात् उन वीर प्रभुने महामोहसे व्याप्त चित्तवाली अपनी माताको, दक्ष पिताको और अन्य बन्धु जनोंको वैराग्य-उत्पादक मधुर वचनोंके द्वारा और सैकड़ों प्रकारके उपदेशी वाक्योंसे अलग-अलग सम्बोधित करते हुए महाकष्टसे उन्हें अपनी दीक्षाके लिए समझाया ॥४१-४२॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020901
Book TitleVir Vardhaman Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSakalkirti, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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