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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir श्री विपाक सूत्र [प्रथम अध्याय नाम का एक उद्यान था। वराण प्रो-वर्णक-वर्णन-ग्रन्थ पूर्ववत् । तेणं कालेणं-उस काल में । तेणं समरणं उस समय में। समणस्स भगवो महावीरस्स-श्रमण भगवान महावीर स्वामी के । अंतेवासीशिष्य । जाइसंम्परणे - जातिसम्पन्न । चोदसपुव्वी- चतुर्दश पूर्वो के ज्ञाता। चउणाणोधगए -- चार ज्ञानों के धारक । वराणो-वर्णक पूर्ववत् । अजसुहम्मे णामं अणगारे- आर्य सुधर्मा नाम के अनगार-(अगार रहित) साधु । पंचहिं अर,गारसएहिं सद्धिं - पांच सौ साधुओं के साथ अर्थात्संपरिखुड़े - उन साधुत्रों से घिरे हुए । पुवाणुपुग्विं चरमाणे- क्रमशः विहार करते हुए । जावयावत् । पुण्णभद्दे चेइर-पूर्णभद्र चैत्य उद्यान । जेणेव - जहां पर था । अहापडिरूवं - साधु-वृत्ति के अनुरूप अवग्रह-स्थान ग्रहण करके । जाव-- यावत् । विहरइ - विहरण कर रहे हैं। परिसा - जनता। निग्गया-निकली। धम्म-धर्म-कथा। सोच्चा–सन करके । निसम्म- हृदय में धारण करके । जामेव दिसं पाउन्भूया-जिस ओर से आई थी । तामेव दिसं पडिगया - उसी ओर चली गई । तेणं कालेणं-उस काल में । तेणं समएण-उस समय में। अजसुहम्मम्स-आर्य सुधर्मा स्वामी के । अंतेवासी-शिष्य । सत्तुस्सेहे-सात हाथ प्रमाण शरीर वाले । जहा-जिस प्रकार । गोयमसामी-गौतम स्वामी, जिन का प्राचार भगवती सूत्र में वर्णित है । तहा -- उसी प्रकार के प्राचार को धारण करने वाले । जाव-यावत् । भाणकोट्ठोवगए-ध्यान रूप कोष्ठ को प्राप्त हुए । विहरति-विराजमान हो रहे हैं । तते णं-उस के पश्चात् । अजजम्बू णामं अणगारे-आर्य जम्बू नामक अनगार-मुनि । जायसड्ढे-श्रद्धा से युक्त । जाव-यावत् । जेणेव -जिस स्थान पर । अजसुहम्मे अणगारे- आर्य सुधर्मा अनगार विराजमान थे । तेणेव उवागए --उसी स्थान पर पधार गये । तिक्खुत्तो-तीन वार । आयाहिणपयाहिणं-दाहिनी ओर से प्रारम्भ करके पुनः दाहिनी ओर तक प्रदक्षिणा को । करोति- करते हैं। करता-करके । वन्दति-वन्दना करते हैं । नमंसतिनमस्कार करते हैं । वंदित्ता नमंसित्ता-वन्दना तथा नमस्कार करके । जाव -यावत् पज्जुवासति - भक्ति करने लगे। पज्जुवा सित्ता-भक्ति करके । एवं-इस प्रकार । वयासो-कहने लगे । मूलाथे—उस काल तथा उस समय में चम्पा नाम की एक नगरी था । चम्पा नगरी का वर्णन औपपातिक सूत्रगत वर्णन के सहरा जान लेना चाहिये । उस नगरो के बाहिर ईशान कोण में पूर्णभद्र नाम का एक चैत्य - उद्यान था। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के शिष्य चतुर्दश पूर्व के ज्ञाता, चार ज्ञानों के धारक, जातिसम्पन्न [जिन की माता सम्पूर्ण गुणों से युक्त अथवा जिस का मातृ पन विशद्व हो ] पांचसौ अनगारों से सम्परिवृत आये सुधर्मा नाम के अनगार-मुनि क्रमशः विहार करते हुए पूर्ण-भद्र नामक चैत्य में अनगारोचित्त अवग्रह-स्थान ग्रहण कर विराजमान हो रहे हैं। धर्म कथा सुनने के लिये परिषद्-जनना नगर से निकल कर वहां आई, धर्मकथा सुनकर उसे हृदय में मनन एवं धारण कर जिस ओर से आई थी उसो ओर चली गई उस काल तथा उस समय में आर्य सुधर्मा स्वामो के शिष्य, जिन का शरीर सात हाथ का है, और जो गौतम स्वामी के समान मुनि-वृत्ति का पालन करने वाले तथा ध्यानरूप कोष्ठ को प्राप्त हो रहे हैं, आर्य *जम्बू नामक अनगार विराजमान हो रहे हैं । तदनन्तर जातश्रद्ध-श्रद्धा से *जम्बू कुमार कौन थे ? इस जिज्ञासा का पूर्ण कर लेना भी उचित प्रतीत होता है । सेठ For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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