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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रथम अध्याय ] हिन्दी भाषा टीका सहित । सम्पन्न आर्य श्री जम्बूस्वामी श्री सुधर्मा स्वामी के चरणों आर से बाईं ओर तीन बार अञ्जलिबद्ध हाथ घुमाकर आवर्तन रूप वन्दना और नमस्कार करके उनकी सेवा करते हुए इस प्रकार बोले । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ३ में उपस्थित हुए, दाहिनी प्रदक्षिणा करने के अनन्तर टीका- आगमों के संख्या बद्ध क्रम में प्रश्न व्याकरण दशवां और विपाक त ग्यारवां अंग है, अतः प्रश्न व्याकरण के अनन्तर विपाक श्रुत का स्थान स्वाभाविक ही है । वर्तमान काल में उपलब्ध प्रश्न दत्त की धर्मपत्नी का नाम धारिणी था । दम्पती सुख पूर्वक समय व्यतीत कर रहे थे । एक बार गर्भकाल में सेठानी धारिणो ने जम्बू वृक्ष को देखा । पुत्रोत्पत्ति होने पर बालक का स्वप्नानुसारी नाम जम्बू कुमार रखा गया । जम्बू कुमार के युवक होने पर आठ सुयोग्य कन्याओं के साथ इनकी सगाई कर दी गई। उसी समय श्री सुवर्मा स्वामी के पावन उपदेशों से इन्हें वैराग्य होगया, सांसारिकता से मन हटा कर साधु जीवन अपनाने के लिये अपने आप को तैयार कर लिया, तथापि माता पिता के प्रेमभरे ग्राग्रह से इन का विवाह सम्पन्न हुआ । विवाह में इन्हें करोड़ों को सम्पत्ति मितो थो । कुमार का हृदय विवाह से पूर्व ही वैराग्यतरंगों से तरङ्गित था, श्री सुधर्मा स्वामी के चरणकमलों का भ्रमर बन चुका था, इसी लिये नववधूओं के श्रृंगार, हावभाव इन्हें प्रभावित न कर सके और वे समस्त सुन्दरिये इन्हें अपने मोह - जाल में फंसाने में सफल न हो सकीं । प्रभव राजगृह का नामी चोर था । विवाह में उपलब्ध प्रीतिदान-दहेज को चुराने के लिये ५०० शूरवीर साथियों का नेतृत्व करता हुआ वह कुमार के विशाल रमणीय भवन में श्रा धमका था। ताला तोड़ देने और लोगों को सुला देने की अपूर्व विद्याओं के प्रभाव से उसे किसी बाधा का सामना नहीं करना पड़ा । भवन के प्रांगन में पड़े हुए मोहरों के ढेरों को गठरियें बांध ली गई, और भवन से बाहिर स्थित प्रभव ने साथियों को उन्हें उठा ले चलने का आदेश दिया । कुमार प्रभव इस कुकृत्य से अपरिचित नहीं थे, धन यादि की ममता का समूलोच्छेद कर लेने पर भी "चांरी होने से जम्बू साधु हो रहा है" इस लोकापवाद से बचने के लिये उन्हों ने कुछ अलोकिक प्रयास किया । भवन के मध्यस्थ सभी चोरों के पांव भूमी से चिपक गये । शक्ति लगाने पर भी वे हिल न सके । इस विकट परिस्थिति में साथियों को फंसा सुन और देख प्रभव सन्न सा रह गया और गहरे विवार- सागर में डूब गया। प्रभव विवारने लगा - मेरो विद्या ने तो कभी ऐसा विश्वास घात नहीं किया था, न जाने यह क्या सुन और देख रहा हूँ, प्रतीत होता है यहां कोई जागता अवश्य है । श्रोह ! अब समझा, विद्या देते समय गुरु ने कहा था- इस का प्रभाव मात्र संसारो जोवन पर होगा । धर्मी पर यह कोई प्रभाव नहीं डाल सकेगी। संभव है यहां कोई धर्मात्मा ही हो, जिसने यह सब कुछ कर डाना है, देखू सही । प्रभव ऊपर जाने लगा, क्या देखता है— सौंदर्य की साक्षात् प्रतिमायें आठ युवतियें सो रही है । सांसारिकता को उत्तेजक सामग्री पास में बिखरी पड़ी । परन्तु एक तेजस्वी युवक किसी विचार धारा में संलग्न दिखाई दे रहा है । प्रभव युवक का तेज सह न सका। और उससे अत्यधिक प्रभावित होता हुआ सीधा वहीं पहुंचा और विनय पूर्वक कहने लगा For Private And Personal " आदरणीय युवक ! जीवन में मैंने न जाने कितने अद्भुत श्राचर्यजनक, और साहस -पूर्ण कार्य किये हैं जिनकी एक लम्बी कहानी बन सकती है । साम्राज्य की बड़ी से बड़ी शक्ति मेरा बाल बांका
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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