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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रथम अध्याय हिन्दी भाषा टीका सहित। हतुढे पासणाओ अब्भुट्ठति अब्भुद्वित्ता पायपीढाश्रो पच्चोरुहति पच्चोरुहित्ता पाउयाओ प्रोमुयति भोमुहत्ता एगसाडियं उत्त० सुदत्तं अणगारे सत्तगुपयाई पच्चुग्गच्छति पच्चुग्गच्छिता तिक्खुत्तो आया० वदति नमंसति वंदित्ता नमेसित्ता जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता सयहत्थेणं विउलेणं असणं पाणं ४ पडिलामेस्सामि ति कट्ट, तु? ३ । तते णं तस्स सुमुहस्स गाहावइस्स तेणं दासुद्धे णं ३ तिविहेणं तिकरणसुद्धणं सुदत्ते अणगारे पडिलाभिए समाणे संसारे परित्तीकते, मणुस्सा उए निवद्ध, गिहंसि य से इमाई पञ्च दिव्वाई पाउब्भूताई, तंजहा-१-वसुहारा वुट्टा, २-दसद्धवरणे कुसुमे निवातिते, ३चेलुम्खेवे कने, ४-पाहतारो देवदुन्दुभीओ, ५-अंतरा वि य णं आगासंसि अहोदाणं अहोदाणं घुट्ठ य । हथियाउरे सिंघाडग० जाव पहेसु बहुजणो अन्नमन्नस्स एवं आइक्खइ ४-धन्ने णं देवाणुप्पिया ! सुमुहे गाहावती जाव तं धन्ने ५ । से सुमुहे गाहावती बहूहं बाससताई आउय पालेति पालित्ता कालमासे कालं किच्चा हेव हत्थिसीसए गगरे अदीणसत्तुस्स रगणो धारिणीए देवीए कुछिसि पुत्तताए उववन्ने । तते णं सा धारिणी देवी सणिज्जसि सुत्तजागरा 'ओहोरमाणी २ तहेव सीहं पासति । सेसं तं चेव जाव उनि पासादे विहरति । एवं खलु गोतमा ! सुबाहुणा इमा एगरूवा मगुस्सरिद्धी लद्धा ३।। ... पदार्य-तते णं-तदनन्तर । से-वह । सुमहे-सुमुख । गाहावती-गाथापति । सुदत्तंसुदत्त । अणमारं-अनगार को। एज्जमाणं-आते हुए को । पासति-देखता है । पासित्ता-देख कर । हट्टतुढे-तुष्ट-अत्यन्त प्रसन्न हुआ २ । श्रासणाओ-आसन से । अब्भुटेति-उठता है । अभुहिता-श्रासन से उठकर । पायपीडायो -पादपीठ -पांव रखने के आसन से । पच्चोरुहतिउतरता है । पच्चोरुहिता-उतर कर । पाउयाओ- पादुकाओं को । अोमुयति-छोड़ता है। श्रोमुइत्ताछोड़ कर । एगसाडियं-एकशाटिक -एक काड़ा जो बीच में सिया हुआ न हो, इस प्रकार का। उत्तउत्तरासंग (उत्तरीय वस्त्र का शरीर में न्यासविशेष) करता है, उत्तरासंग करने के अनन्तर। सुदत्त-सुदत्त । अणगार -अनगार के । स सट्ठपयाई-सात आठ कदम, सत्कार के लिये । पच्चुग्गच्छति-सामने जाता है। पन्चुच्छित्ता-सामने जा. कर । तिक्वुतो-तोनबार । आया० -श्रादक्षिण प्रदक्षिणा करता है, कर के। वंदति- वन्दना करता है। नमसति:-- नमस्कार करता है । वंदित्ता नमंसित्ता वंदना तथा नमस्कार कर के। जेणेव-जहां । भत्तघरे-भक्तगृह था। तेणे-वहां पर। उवागच्छति उवागछिळ - त्ता-आता है, अाकर । सयहत्थेणं- अपने हाथ से । विउलेणं-विपुल । असणं पाणं ४-अशन, पान देवानुप्रिया:! सुमुखो गाथापतिः यावद् तद्धन्यः ५ । स सुमुखो गाथापतिः बहूनि वर्षशतानि आयुः पालयति पालयित्वा कालमासे कालं कृत्वा इहैव अदीनशत्रोः राज्ञो धारिण्या देव्याः कुक्षौ पुत्रतयोपपन्नः। तत: सा धारिणी देवी शयनीये. सुप्त जागरा (निद्राती) २ हस्तिशीर्षके नगरे तथैव सिंह पश्यते । शेषं तदेव यावत् उपरि प्रासादे विहरति । तदेवं खलु गौतम ! सबाहुना इयमतेद्रूपा मनुष्यर्द्धिलब्धा ३ । (१) वारं वारमीषभिद्रां गछन्तीत्यर्थः (वृत्तिकारः) For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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