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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir श्री विपाकसूत्र [प्राक्कथन कार भ्रमण) से युक्त, १६ कषायरूप श्वापद- हिंसक जीवों से अत्यन्त रुद्र-भीषण, अनादि अनन्त संसार सागर को परिमित करते हैं, और देवों की आयु को बांधते हैं, देवविमानों के अनुपम सुखों का अनुभव करते हैं, वहां से च्यव कर इसी मनुष्यलोक में आये हुए जीवों की *आयु, शरीर, पुण्य, रूप, जाति, कुल, जन्म, आरोग्य, बुद्धि तथा मेधा की विशेषताएं पाई जाती हैं। इस के अतिरिक्त मित्रजन, स्वजन-पिता, पितृव्य धादि, धन, धान्यरूप लक्ष्मी-समृद्धि, नगर, अन्तःपुर, कोप-खजाना, काष्ठागार- धान्यगृह, बल- सेना, वाहन-हाथी, घोड़े आदि रूप सम्पदा, इन सब के सारसमुदाय की विशेषताएं तथा नाना प्रकार के कामभोगों से उत्पन्न होने वाले सुख ये सभी उपरोक्त विशेषताएं स्वर्गलोक से आए हुए जीवों में उपलब्ध होती हैं। जिनेन्द्र भगवान् ने संवेग- वैराग्य के लिए विपाकश्रुत में अशुभ और शुभ कर्मों के निरन्तर होने वाले बहुत से विपाकों-फलों का वर्णन किया है। इसी प्रकार की अन्य भी बहुत सी अर्थप्ररूपणाएं (पदार्थविस्तार) कथन की गई हैं । श्रीविपाकसूत्र की वाचनाएं (सूत्र और अर्थ का प्रदान अर्थात् अध्यापन) परिमित हैं । अनुयोगद्वार-व्याख्या करने के प्रकार, संख्येय (जिनकी गणना की जा सके) हैं और संग्रहणियां- पदार्थों का संग्रह करने वाली गाथाएं, संख्येय हैं। विपाकसूत्र अङ्गों की अपेक्षा ११ वां अङ्ग है इस के २० अध्ययन हैं और इस के बीस उद्देशनकाल तथा बीस ही समुद्देशनकाल हैं । पदों का प्रमाण संख्यात लाख है अर्थात् इस में एक करोड़ ८४ लाख ३२ हजार पद हैं । अक्षर-वर्ण संख्येय हैं । गम अर्थात एक ही सूत्र से अनन्तधर्मविशिष्ट वस्तु का प्रतिपादन अथवा वाच्य-पदार्थ और वाचक-पद अथवा शास्त्र का तुल्यपाठ जिस का तात्पर्य भिन्न हो, अनन्त हैं । पर्याय-समान अर्थों के वाचक शब्द भी अनन्त हैं। इसी प्रकार यावत् विपाकश्रुत में चरण-पांच महाव्रत आदि ७० बोल और करण- पिण्डविशुद्धि आदि जैनशास्त्रप्रसिद्ध *आयु की विशेषता का अभिप्राय है कि अन्य जीवों की अपेक्षा आयु का शुभ और दीर्घ होना। इसी भाँति शरीर की विशेषता है-संहनन का स्थिर- दृढ़ होना । पुण्य की विशेषता है- उस का बराबर बने रहना। रूप की विशेषता है-अति सुन्दर होना । जाति और कुल का उत्तम होना ही जाति और कुल की विशेषता है । जन्म की विशेषता का हार्द है-विशिष्ट क्षेत्र और काल में जन्म लेना । आरोग्य-नीरोगता की विशेषता उस के निरन्तर बने रहने में है। औत्पातिकी आदि चार प्रकार की बुद्धियों का चरमसीमा को प्राप्त करना बुद्धि की विशेषता है। अपूर्व श्रुत को ग्रहण करने की शक्ति की प्रकर्पता ही मेधा की विशेषता है । शिष्य के- महाराज मै कौन सा सूत्र पढ़ ? इस प्रश्न पर गुरुदेव का आचाराङ्ग आदि सूत्र के पढ़ने के लिये सामान्यरूप से कहना उद्देशन कहलाता है, परन्तु गुरु के किए गए "श्रीआचारांगसूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध के प्रथम अध्ययन को पढ़ा-' इस प्रकार के विशेष आदेश को समुद्देशन कहते हैं। गुरु से आदष्ट सूत्र के अध्ययनार्थ नियतकाल को उद्देशनकाल, इसी माँ। गुरु से आदिष्ट अमुक अध्ययन के पठनार्थ नियतकाल को समुदेशन काल कहा जाता है । * पांच महाव्रत, दस प्रकार का यतिधर्म, १७ प्रकार का संयम, १० प्रकार का वैयावृत्य, For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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