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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्राक्कथन हिन्दीभाषाटीकासहित ७० *बोलों की प्ररूपणा (विशेषरूप से वर्णन) की गई है। श्रीसमवायांगसूत्र की भाँति श्रीनन्दीसूत्र में भी श्रीविपाकसूत्रविषयक जो वर्णन उपलब्ध होता है, उस का उल्लेख निम्नोक्त है से कि तं विवागसुगं ? विवागसुए णं सुक्कडदुक्कडाएं कम्माणं फलविवागे आघविज्जइ । तत्थ ण दस दुहविवागा, दस सुहविवागा। से किं तं दुहविवागा ? दुहविवागेसु णं दुइविवागाणं नगराई उजाणाई वणसंडाई चेइयाई समोसरणाई रायाणो अम्मापियरो धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइयपरलोइया इड्ढिविसेसा निरयगमणाई संसारभवपवंचा दुहारंपराओ दुक्कुलपच्चायाईअो दुल्लहबोहिय आघविज्जइ, से तं दुहविवागा । से किं तं सुहविवागा ? सुहविवागेसु णं सुहविवागाण नगराई उज्जाणाई वणांडाई चेइयाई समोसरणाई रायाणो अम्मापियरो धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइयपरलोइया इढिविसेसा भोगपरिच्चागा पाज्जाओ परियागा सुयपरिग्गहा तवोवहाणाई संलेहणाश्रो भत्तपच्चक्खाणाई पाओवगाणाई देवलोगगाणाई सुहपरंपराअो सुकुलपच्चायाईओ पुणबोहिलामा अन्तकिरियाअो आघविज्जन्ति। विवागसुयस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुयोगदारा, संखेज्जा वेढा,संखेज्जा सिलोगा,संखेज्जाओ निम्जुनी मो,संबेज्जात्रो संगहणीओ,संखेज्जाओ पडिवत्तिो,सेणं अंगठ्ठयाए इक्कारसमे अंगे, दो सुयखंधा, वीसं अज्झयणा, वीसं उद्दसणकाला, वीसं समुद्देसणकाला, शंखिज्जाई पयसहस्साई पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता, गमा, अणंता पज्जवा, परिचा तसा, अणंता थावरा सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपएणत्ता भावा आघविज्जन्ति पएणविज्जन्ति परूविज्जन्ति दंसिज्जन्ति निदंसिज्जन्ति उवदसिज्जन्ति, से एवं आया, एवं नाया एवं विएणाया एवं चरणकरणपरूवणा आघविजइ,से तं विवागसुगं। इन पदों का भावार्थ निम्नोक्त है प्रश्न-श्रीविपाकश्रुत क्या है ? अर्थात् उस का स्वरूप क्या है ? उत्तर-श्रीविपाकसूत्र में सुख और दुःख रूप विपाक-कर्मफल का वर्णन किया गया है और वह दश दुःख-विपाक तथा दश सुखविपाक, इन दो विभागों में विभक्त है। रहा"--दुःखविपाक के दश ६ प्रकार की ब्रह्मचर्य गुप्तियें, १ ज्ञान, २ दर्शन, ३ चारित्र, १२ प्रकार का तप, १ क्रोधनिग्रह, २ माननिहन ३ मायानिग्रह, ४ लोभनिग्रह, इन ७० बोलों का नाम चरण है। _ *चार प्रकार को पिण्डविशुद्धि, ५ प्रकार की समितियें, १२ प्रकार की भावनाएं, १२ प्रकार की प्रतिमाएं- प्रतिज्ञाएं, ५ प्रकार का इन्द्रियनिग्रह, २५ प्रकार की प्रतिलेखना, ३ प्रकार की गुप्तियां, ४ प्रकार के अभिग्रह, इन ७० बोलों को करण कहा जाता है । For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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