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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रथम अध्याय ] हिन्दी भाषा टीका सहित । (५५१ पदार्थ-तेणं- उस । कालेणं-काल । तेणं-उस । समय-समय । रायगिहे - राजगृह । णगरे-नगर के । गुणसिलए-गुणशील । चेइए-चेत्य में | सुहम्मे-सुधर्मा स्वामी । समोसढे पधारे जंब -जंब स्वामी। जाव-यावत । पज्जवासति--पयुपासना - भक्ति करने लगे । एवं-इस प्रकार । वयासी-कहने लगे। जइ णं यदि । भंते !-हे भगवन् ! | समणेणं-श्रमण । जाव - यावत् । संपत्त. -मोक्षसंप्राप्त महावीर ने । दुहविवागाणं - दुःखविपाक का । अयम - यह अर्थ । परापत्त-प्रतिपादन किया है, तो । सुहविवागाणं-सुखविपाक का । भंते! - हे भगवन् ! । समणे- श्रमण । जाव-यावत् । संपत्तेणं- मोक्षसंप्राप्त ने । के अटे-क्या अर्थ । पण्णत्त ?- प्रतिपादन किया है ? । तते णं - तदनन्तर । से-वह । सुहम्मे-सुधर्मा स्वामी । अणगारे-अनगार । जंबु-जम्बू । अणगारं-अनगार के प्रति । एवं वयासी- इस प्रकार बोले । एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही । जंबू !- हे जम्बू !। समणेणंश्रमण । जाव-यावत् । संपत्तणं-सम्प्राप्त महावीर द्वारा । सुहविवागाणं-मुखविपाक के । दस-दश । अज्झयणा-अध्ययन । परणत्ता- प्रतिपादन किये गये हैं । तंजहा-जैसे कि । १-सुबाहू-१--सुबाहु २-भहनन्दी य-२-और भद्रनन्दी । ३-सुजाए-३ - सुजात । ४-सुवासवे-४-सुवासव । तहेय-तथैव-उसी तरह। ५-जिणदासे-५-जिनदास । ६-धनवती य-६-और धनपति । ७महव्वलो- ७- महाबल । ८-भद्दनन्दीय-८-और भद्रनन्दी। ९-महचंदे- महाचन्द्र । १०- वरदर -१०- वरदत्त । जति णं- यदि । भंते!-भदन्त ! । समणेणं-श्रमण । जाव-यावत् । संपत्तेण - मोक्षसम्प्राप्त ने । सुहविवागाणं- सुखविपाक के । दस-दश । अझयणा - अध्ययन । पगणत्ता-कथन किये हैं, तो । पढमस्स - प्रथम । अझयणस्त -अध्ययन का । भंते ! - हे भगवन् ! । सुहविवागाणंसुखविपाक के । जाव-यावत् । संपत्तेणं- मोक्षसंप्राप्त महावीर स्वामी ने । के अटे - क्या अर्थ । परणप्रतिपादन किया है । । तते णं-तदनन्तर । से-वह। सुहम्मे - सुधर्मा स्वामी । जंबु- जम्बू । अणगोरं-अनगार के प्रति । एवं क्यासी-इस प्रकार बोले। मूलार्थ - उस काल और उस समय राजगृह नगर के अन्तर्गत गुणशील नामक चैत्य में अनेगा श्री सुधर्मा स्वामी पधारे। तब उन की पर्युपासना में रहे हुए जम्बू स्वामी ने उन के प्रति इस प्रकार कहा कि हे भगवन् ! यावत् मोक्षसंप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने यदि दुःविपाक का यह (पूर्वोक्त) अथ प्रतिपादन किया है तो यावत् मोक्षसंप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सुखविपाक का क्या अथ प्रतिपादन किया है ?, इस के उत्तर में श्रीसुधर्मा अनगार श्रीजंबू अनगार के प्रति इस प्रकार बोले - जम्बू ! यावत् मोक्षसप्राप्त श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने सुखविपाक के दस अभ्ययन प्रतिपादन किये हैं, जैसे कि १-सुबाहु, २-भद्रनन्दी, ३ -सुजात, ४-सुवासव. ५-जिनदास, ६-धनपति, ७महाबल, ८-भद्रनन्दी. ९-महाचन्द्र, १०-वरदत्त ।। . भगवन् ! यावत् मोक्षसंप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने यदि सुखविपाक के सुबाहुकुमार आदि दश अध्ययन प्रतिपादन किये हैं तो भदन ! यावत् मोक्षसंप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सुखविपाक के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कथन किया है ?, तदनन्तर इस प्रश्न के उत्तर में श्री सुधर्मा स्वामी श्री जम्बू अनगार के प्रति इस प्रकार कहने लगे।। टीका-संशय का विपक्षी निश्चय है, इसी भान्ति दुःख का विपक्षी सुख है । सुख की प्राप्ति सुखजनक कृत्यों को अपनाने से होती है। जब तक सुख के साधनों को अपनाया नहीं जाता तब तक सुख की For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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