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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org नवम अध्याय] हिन्दी भाषा टीका सहित। [५२३ सेटि० बीहिं० सोहम्मे० महाविदेहे० सिज्झिहिति ५ णिक्खेवो । ॥णवमं अज्झयणं सम ।। __ पदार्थ-गोतमा ! -हे गौतम ! । असीति - अस्सी (८०) । वासाई -वर्षों की । परमाउ-परमायु । पालयित्ता - पाल कर-भोग कर । कालमासे - कालमास में - मृत्यु का समय आजाने पर । कालं-काल । किच्चा -करके । इमीसे - इस । रयणधभार - रत्नप्रभा नाम की । पुढवीर-पृथ्वी-नरक में । उववज्जि. हिति---उत्पन्न होगी । संसारो-शेष संसारभ्रमण कर । वणस्त० -वनस्पतिगत निम्ब आदि कटुवृक्षों तथा कटु दुग्ध वाले अर्कादि पौधों में लाखों वार उत्पन्न होगी । ततो-वहां से । अणंतरं-अन्तर रहित । उम्वहिता-निकल कर । गंगापुरे -- गंगापुर । णगरे -नगर में। हंसत्तार - हंसरूप से । पच्चायाहिति-उत्पन्न होगी। से रणं - वह हंस । तस्य - वहां पर । साउणि रहि-शाकुनिकों-शिकारियों के द्वारा । वहिते-वध किया। समाणे -हुा । तत्थेव -वहीं। गंगापुरे-गंगापुर में । सेटि-श्रेष्ठिकुल में उत्पन्न होगा । बोहिं०-सम्यक्त्व को प्राप्त करेगा। सोहम्मे० -सौधर्म देवलोक में उत्पन्न होगा, वहां से । महावि - देहे०-महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा, वहां से । सिज्झिहिति ५-सिद्धि प्राप्त करेगा , केवलज्ञान के द्वारा समस्त पदार्थों को जानेगा, सम्पूर्ण कर्मा से रहित हो जाएगा, सकल कर्मजन्य सन्ताप से विमुक्त हो जाएगा तथा सर्व प्रकार के दुःखों का अन्त कर डालेगा। णि खेयो -निक्षेप - उपसंहार की कल्पना पूर्व की भांति कर लेनी चाहिये । णवम - नवम । अज्मरणं - अध्ययन । समत्तं - सम्पूर्ण हुआ। मूलार्थ-हे गौतम ! देवदत्तादेवी अशीति (८०) वर्षों की परम आयु पाल कर कोलमास में काल करके इस रत्नप्रभा नाम की पृथिवी - नरक में उत्पन्न होगी। शेष संसारभ्रमण पूर्ववत् करती हुईप्रथम अध्ययनवर्ती मृगापुत्र की भांति यावत् वनस्पतिगत निम्ब आदि कटु वृक्षों में तथा कटु दुग्ध वाले अर्क आदि पौधों में लाखों वार उत्पन्न होगी । वहाँ शाकुनिकों द्वारा वध किये जाने पर वह हंस उसी गंगापुर नगर में श्रेष्ठिकुल में पुत्ररूप से जन्म लेगा, वहां सम्यक्त्व को प्राप्त कर सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में उत्पन्न होगा, वहां चारित्र यहण कर सिद्धि प्राप्त करेगा, केवल ज्ञान द्वारा समस्त पदार्थों को जानेगा, सम्पूर्ण कर्मों से विमुक्त हो जाएगा, समस्त कर्मजन्य सन्ताप से रहित हो जाएगा तथा सब दुःखों का अन्त करेगा । निक्षे-उपसंहार को कल्पना पूर्ववत् कर लेनी चाहिये । ॥ नवम अध्ययन समाप्त ॥ टीका-श्रमण भगवान् महावीर स्वामी द्वारा वर्णित देवदत्ता के पूर्व जन्म सम्बन्धी वृत्तान्त को सुन लेने के बाद गौतम स्वामी को उसके अागामी भवों को जिज्ञासा हुई, तदनुसार उन्हों ने भगवान् से उस के भावी जीवनवृत्तान्त का वर्णन करने की प्रार्थना की । गौतम स्वामी की प्रार्थना से भगवान् ने देवदत्ता के भावी जीवन के वृत्तान्त को सुनाते हुए जो कुछ कहा, उस का वर्णन मूलार्थ में किया जा चुका है। यह वर्णन भी प्रायः पूर्व वर्णन जैसा ही है, अतः वह अधिक विवेचन की अपेक्षा नहीं रखता। वास्तव में मानव जीवन एक पहेली है । उस में सुख दुःख की अवस्थात्रों का घटीयंत्र की तरह आना जाना निरन्तर बना रहता है । विविध प्रकार की परिस्थितियों से गुज़रता हुआ यह जीवात्मा जिस समय बोधि-सम्यक्त्व का लाभ प्राप्त करता है, उस समय इसका उत्क्रान्ति मार्ग की ओर प्रस्थान करने का रुख होता है, वहीं से इस की ध्येयप्राप्ति का कार्य प्रारम्भ होता है । सम्यक्त्व की प्राप्ति के अनन्तर शुभ संयोगों के सन्निधान से प्रगति मार्ग को ओर प्रस्थान करने वाला साधक का आत्मा कर्मबन्धनों को तोड़ कर एक न एक दिन अपने वास्तविक लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। वहां इसकी जन्म मरण' परम्परा की विकट यात्रा का पर्यवसान हो जाता है और उसे शाश्वत सुख प्राप्त हो जाता है । यही इस कथा का सारांश है। For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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