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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir नवम अध्याय हिन्दी भाषा टीका सहित । आयु वाले प्राणियों को शस्त्र आदि का कोई न कोई निमित्त मिल हो जाता है, जिस से वे अकाल में ही मर जाते हैं और अनपवर्तनीय आयु वालों को कैसा भी प्रबल निमित्त क्यों न मिले, पर वे अकाल में नहीं मरते। प्रश्न -नियत काल मर्यादा से पहले आयु का भोग हो जाने से कृतनाश (किये हुए का नाश), अकृताभ्यागम जो नहीं किया उस की प्राप्ति) और निष्फलता (फल का अभाव) दोष लगेंगे, जो शास्त्र में इष्ट नहीं, उन का निवारण कैसे होगा? उत्तर - शीघ्र भोग होने में उक्त दोष नही आने पाते, क्योंकि जो कर्म चिरकाल तक भोगा जा सकता है, वही एक साथ भोग लिया जाता है । उस का कोई भी भाग बिना विपाकानुभव किये नहीं छुटता, इसलिये न तो कृतकर्म का नाश है और न बद्धकर्म की निष्फलता ही है, इसी तरह कर्मानुसार आने वालो मृत्यु ही आती है । अतएव अकृत कर्म का आगम भी नहीं । जैसे-घास की सघन राशि में एक तरफ़ छोटा सा अग्निकण छोड़ दिया जाए तो वह अग्निकण एक २ तिनके को क्रमशः जलाते २ सारी उस राशि को विलम्ब से जला सकता है, किन्तु यदि वे ही अग्निकण घास का शिथिल और विरल राशि में चारों ओर छोड़ दिये जाए तो एक साथ उसे जला डालते हैं । __इसी बात को विशेष स्पष्ट करने के लिये शास्त्र में और भी दो दृष्टान्त दिये गये हैं। पहलागणितक्रिया का और दूसरा वस्त्र सुखाने का है । जैसे कोई विशिष्ट संख्या का लघुतम छेद निकालना हो तो इस के लिये गणित प्रक्रिया में अनेक उपाय हैं । निपुण गणितज्ञ प्रभीष्ट फल लाने के लिये एक ऐसी रीति का उपयोग करता है, जिस से बहुत ही शीघ्र अभीष्ट परिणाम निकल पाता है, दूसरा साधारण जानकार मनुष्य भागाकार आदि बिलम्बसाध्य प्रक्रिया से उस अभीष्ट परिणाम को देरी से ला पाता है। इसी तरह से समान रूप में भीगे हुए कपड़ों में से एक को समेट कर और दूसरे को फैलाकर सुखाया जाय. तो पहला देरी से और दूसरा जल्दी से सखेगा। पानी का परिमाण और शोषणक्रिया समान होने पर भी कपड़े के संकोच और विस्तार के कारण उसके सूखने में देरी और जल्दी का फ़क पड़ जाता है । समान परिमाण से युक्त अपवर्तनीय और अनपवतीय आयु के भोगने में भी सिर्फ देरी और जल्दी का ही अन्तर पड़ता है और कुछ नहीं । इस लिये यहां कृत का का नाश आदि उक्त दोष नहीं आते। उपरोक्त चर्चा से अकालमृत्य, ओर काल मृत्यु को समस्या अनायास ही सुलझाई जासकती है, तथा दोनों प्रकार की मृत्यु का वर्णन शास्त्रसम्भत है। तब ही राजमाता श्रीदेवी की मृत्यु को अकालमृत्यु के नाम से प्रस्तुन सूत्रपाठ में अभिहित किया गया है। ___दास और दासियों के द्वारा राजमाता श्रीदेवी की हत्या का समाचार मिलने के अनन्तर महाराज पुष्यनन्दी के हृदय पर उस का क्या प्रभाव पड़ा और उसने क्या किया ?, अब अग्रिम सूत्र में उस का वर्णन करते हैं - मूल -'तते णं से पूमणंदी राया तासिं दासचेडोणं अतिए एयम? सोच्चा (१) औपपातिक-चरमदे होत्तमपुरुषाऽसंखेयवर्षायुषोऽपवायुषः । (तत्त्वार्थसूत्र-- अ. २, सूत्र. ५२ के विवेचन में पंडितप्रवर श्री सुखलाल जी) (२) काया- ततः स पुष्यनन्दी राजा तासां दासचेटीनामन्तिके एतमर्थ अत्वा निशम्य महता मातृशोकेनाकातः सन् परशनिकृत्त इव चम्पकवरपादपो धसेति धरणीतले सर्वांग: सन्निपतित: । ततः स पुष्यनन्दी राजा मुहूर्तान्तरे श्वस्तः सन् बहुभी राजेश्वर० यावत् सार्थवाहै: मित्र. यावत् परिजनेन च साद्ध रुदन्. ३ श्रियो देव्या: महता ऋद्धिसत्कारसमुदयेन निस्सरणं करोति २ आशुरुतः ४ देवदत्तां देवीं पुरा यावद् विहरति । For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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