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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ५२०] श्री विपांक सूत्र [नवम अभ्याय निसम्म महया मातिसोएणं अप्फुरणे समाणे परसुनियत्ते विव चंपगवरपायवे धसत्ति धरणीतलंसि सव्वंगेहि सन्निपडिते । तते णं से पूसणंदी राया मुहुत्ततरेण आसत्थे समाणे बहूहिं राईसर० जाव सत्थवाहेहि मित्त० जाव परियणेणं य सद्धि रोयमाणे ३ सिरीए देवीए महता इड्ढिसक्कारसमुदएणं नीहरणं करेति २ आसुरुत्ते ४ देवदत्वं देविं पुरिसेहिं गेण्हावेति २ एतेणं विहाणेणं वझ आणावेति । एवं खलु गोतमा ! देवदत्ता देवो पुरा जाव विहरति । पदार्थ-तते णं-तदनन्तर । से-वह । पूसणंदी-पुष्यनन्दी । राया राजा । तासिं-उन । दासचेडीणं-दास और चेटियों-दासियों के । अंतिए-पास से । एयम?--- इस वृत्तान्त को। सोच्चासुन कर । निसम्म उस पर विचार कर। महया-महान् । मातिसोएणं - मातृशोक से । अप्फुरणे समाणे-आक्रान्त हुा । परसुनियत्त - परशु - कुल्हाड़े से काटे हुए । चंपगवरपायवे - चम्पकवरपादपश्रेष्ठ चम्पक वृक्ष की। विव-तरह । धसत्ति धस (गिरने की ध्वनि का अनुकरण ), ऐसे शब्द से अर्थात् धड़ाम से । धरणीतलंसि- पृथ्वीतल पर । सव्वंगहिं-सर्व अंगों से । सन्निपडिते-गिर पड़ा । तते णंतदनन्तर । से-वह । पूसणंदी-पुष्यनन्दी । राया-राया । मुरतंतरेण एक मुहूर्त के बाद । आसत्थे समाणे-आश्वस्त होने पर । बहूहिं-- अनेक । राईसर० -राजा - नरेश, ईश्वर -- ऐश्वर्य युक्त । जाव - यावत् । सत्यवाहेहिं-सार्थवाहों –यात्री व्यापारियों के नायकों अथवा संघनायकों, और । मित्त. -- मित्र आदि । जाव-यावत् । परियणेणं य-परिजन के । सद्धिं-साथ । रोयमाणे ३ –रुदन, अाक्रन्दन और विलाप करता हुअा। सिरीए देवीए- श्री देवी का । महता-महान् । इढिसक्कारसमुदएणं --- ऋद्ध तथा सत्कार समुदाय के साथ । नीहरणं करेति २-निष्कासन - अरथी ( सीढ़ी के आकार का ढांचा जिस पर मुर्दे को रख कर श्मशान ले जाते हैं) निकालता है, निकाल कर के । आसुरुत्ते ४ - क्रोध के आवेश में लाल पीला हुआ । देवदत्तं देविं-देवदत्ता देवी को । पुरिसेहि-राजपुरुषों से । गेराहावेति २- पकड़वाता है. पकड़ा कर । एतेणं-इस । विहाणेणं-विधान से । वझ-यह वच्या - हन्तव्या है, ऐसी राजपुरुषों को। वेति-आज्ञा देता है। तं-अतः । एवं-इस प्रकार । खलु-निश्चय ही । गोतमा !- हे गौतम !। देवदत्ता-देवदत्ता । देवी-देवी । पुरा-पुरातन । जाव-यावत् । विहरति-विहरण कर रही है। मूलार्थ-तदनन्तर पुष्यनन्दी राजा उन दास और दासियों के पास से इस वृत्तान्त का सुन और विचार कर महान् मातृशोक से आक्रान्त हुआ परशु से निकृत्त -काटे हुए चम्पक वृक्ष की भान्त धस शब्द पूर्वक भूमि पर सम्पूण अंगों से गिर पड़ा । तत्पश्चात मुहूर्त के बाद वह पुष्यनन्दा राजा आश्वस्त हो होश में आने पर राजा, ईश्वर यावत् सार्थवाह इन सब के साथ और मित्रों. ज्ञातजनों.निजकजनों स्वजनों, सम्बन्धिजनों और परिजनों के साथ रुदन, क्रन्दन सौर विलाप करता हुआ महान ऋद्धि एवं सकारसमदाय से श्रीदेवी की अरथी निकालता हैं । तदनन्तर क्रोधातिरेक से लाल पोला हो वह देशदत्ता बीको राजपुरुषों से पकड़ा कर इस विधान से वध्या-मारी जाए, ऐसी श्राज्ञा देता है अर्थात गौतम ! जैसे तम ने देवदत्ता का स्वरूप देखा है, उस विधान से देवदत्ता हन्तव्या है, य: अज्ञा राजा पुष्यनन्दी की ओर से राजपुरुषों को दी जाती है । इस प्रकार निश्चय ही हे गौतम ! देवदत्ता देवी पूर्वकृत पाप कर्मों का फल भोगती हुई विहरण कर रही है। टीका-दासियों के द्वारा राजमाता श्रीदेवी की मृत्यु का वृत्तान्त सुनने तथा उसकी परम प्रेयसी देव - दत्ता द्वारा उसका वध किये जाने के समाचार ने रोहीतकनरेश पुष्यनन्दी की वही दशा कर दी जो कि सर्वस्व For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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