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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ४७८] श्रावपाक सुत्र | नवम अध्याय के अवपाक्य -- तवे, पाच सौ रजत के तव, पाच सो सुवणं और रजत के तवे, पांच सौ सुवर्ण के पादपीठ-पैर रखने के आसन, पांच सौ रजत के पादपीठ, पांच सौ सुवर्ण और रजत के पादपीठ, पांच सौ सुवर्ण के भिसिका-श्रासनविशेष, पांच सौ रजत के आसनविशेष, पांच सौ सुवर्ण और रजत के आसनविशेष, पांच सौ सुवर्ण के करोटिका -कूण्डे अथवा बड़े मुह वाले पात्र विशेष, पाच सौ रजत की करोटिका, पांच सौ सुवणे और रजत की करोटिका, पांच सौ सुवर्ण के पलंग, पांच सौ रजत के पलंग, पांच सौ सोने और रजत के पलंग, पांच सौ सुवर्ण की प्रतिराय्या - उत्तरशय्या अर्थात् छोटे पलग, पांच सौ रजत की प्रतिशय्या पांच सौ सुवर्ण और रजत की प्रतिशय्या पांच सौ हंसासन - हंस के चिह्न वाले आसनविशेष, पांच सौ कौंवासन - क्रौं वपक्षी के आकार वाले आसनविशेष, पांच सौ गरुड़ासन-गरुड़ के आकार वाले अासनविशेष, पांच सौ उन्नत - ऊंचे आसन, पांच सौ प्रणत - नीचे आसन, पांच सौ दीर्घ लम्बे आसन, पांच सौ भद्रासन - अासनविशष, पांच सौ पक्ष्मासन - श्रासनविशेष जिन के नीचे पक्षियों के अनेकविध चित्र हो, पांच सौ मकरासन -- मकर के चिह्न वाले श्रासन, पांच सौ पद्मासन - श्रासनविशेष, पांच सौ दिशासौवस्तिकासन दक्षिणावर्त अर्थात् स्वस्तिक के श्राकार वाले श्रासन, पांच सौ तैजसमुद्ग-तेल के डब्बे, इन के अतिरिक्त राजप्रश्नीय सूत्र में कहे हुए यावत् पांच सौ सरसों रखने के डब्बे, पांच सौ कुबड़ी दासिये इस के अतिरिक औपपातिकसूत्र के कहे अनुसार यावत् । पांच सौ पारिसी - पारस देशोत्पन्न दा सये, पांच सौ छत्र, पांच सौ छत्र धारण करने वाली दासिय. पांच सौ चंवर, पांच सौं चंवर धारण करने वाली दासिये, पांच सौ पखे, पांच सौ पंखा झुलाने वाली दासियें, पांच सौ पानदान वे डिब्बे जिन में पान और उस के लगाने की सामग्री रखो जातो है, पनडबा), पांच सौपानदान को धारण करने वाली दासिएं, पांच सौ क्षीरधात्रिएं - बालकों को दूध पिलाने वाली धायमाताएं, यावत् पांच सौ बालकों को गोद में लेने वाली धायमाताएं. पांच सौ अंगमर्दन करने वाली स्त्रियें, पांच सौ उन्मर्दिका-विशेष रूप से अंगमर्दन करने वाली दासिए', पांच सौ स्नान कराने वाली दासिये, पांच सौ अगार कराने वाली दासिए, पांच सौ चन्दनादि पीसने वाली दासिए, पांच सौ चूर्ण पान का मसाला अथवा सुगन्धित द्रव्य को पीसने वाली दासिए, पांच सौ कीड़ा कराने वाली दासिए पांच सौ परिहास - मनोरंजन कराने वाली दासिए'. पांच सौ राजसभा के समय साथ रहने वाली दासिए'. पांच सौ नाटक करने वाली दासिए पांच सौ साथ चलने वाली दासिए, पांच सौ रसोई बनाने वाली दासिएं. पांच सौ भाण्डागार - भण्डार की देख भाल करने वाली दासिए', पांच सौ मालिने, पांच सौ पुष्प धारण कराने वाली दासिए. पच सौ पानी लाने वाली दासिए, पांच सौ बलिकम – शरीर की स्फूर्ति के लिये तैलादि मर्दन करने वालो दासिये पांच सौ शय्या बिछाने वाली दासिए, पांच सौ अन्तःपुर का पहरा देने वाली दासिए, पांच सौ 'बाहिर का पहरा देने वाली दासिए, पांच सौ माला गूथने वाली दासिए', पांच सौ बाटा श्रादि पीसने वाली अथवा सन्देशवहन करने वाली दासिए, और बहुत सा हिरण्य, सुवर्ण, कांस्य - कांसी, बस्त्र, विपुल बहुत धन, कनक, रत्न, मणि, मोती, शंख, मूगा, रक्त रत्न, उत्तमोत्तम वस्तुएं, स्वापतेय – रुपया पैसा आदि द्रव्य, दिया जो इतना पर्याप्त था कि सात पीढ़ी तक चाहे इच्छापूर्वक दान दिया जाय, स्वयं उस का उपभोग किया जाय, या खूब उसे बांटा जाय तो भी वह समाप्त नहीं हो सकता था। . ___ -उप्पिं जाव विहरति- यहां पठित जाव-यावत् पद से विवक्षित -पासायवरगर कु:माणेहिं - (१) पृष्ठ १६० तथा १६१ पर चिलाती, वामनी आदि सभी दासियों का उल्लेख किया गया है। (२) पृष्ठ १६० पर मञ्जनधात्री तथा मण्डनधात्री आदि शेष माताओं के नाम वर्णित हैं । For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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