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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir नवम अध्याय] हिन्दी भाषा टोका महित । । ४७७ ___पांच सौ हिरण्यकोटि ( हिरण्यो अर्थात् श्राभूषणों के रूप में अपरिणत करोड़ मूल्य वाला सोना अथवा चांदी के सिक्के ।, पांच सौ सुवण कोटि (आभूषण के रूप में परिवर्तित सोना, जिस का मूल्य करोड़ हो , 'पांच सौ उत्तम मुकुट, पांच सा उत्तम कुडलों के जोड़े पांच सौ उत्तम हार, पांच सौ उत्तम अर्द्धहार पाँच सौ उत्तम एकावली हार, पांच सौ उतम मुक्तावली हार. गंच सौ उनम कनकावली हार, पाच सौ उत्तम रत्नावली हार. पांव मौ उत्तम कड़ों के जोड़े, पांच सौ उत्तम भुजबंधों के जोड़े पांच सौ उत्तम रेशमी वस्त्रों के जोड़े, पांच सौ उत्तम वटक-टसर के वस्त्र-युगल, पांच सौ उत्तम पट्टसूत्र के वस्त्र - युगल, पांच सौ दुकूल नामक वृक्ष की त्वचा से निर्मित वस्त्र-युगल, पांच सौ श्री देवी की प्रतिमाएं, पांच सौ हो देवी की प्रतिमाएं, पांच सौ धृति देवी की प्रतिमाएं, पांच सौ लक्ष्मी देवी की प्रतिमाएं, पांच सो नन्द मांगलिक वस्तुए अथवा लोहासन, पांच सौ भद्र-मांगलिक वस्तुए अथवा शरासन, पांच सौ उत्तम रत्नमय ताल वृक्ष अपने २ भवनों के चिहस्वरूप पांच सौ उत्तम ध्वजा, दस हज़ार गौओं का एक गोकुल होता है ऐसे पांच सौ उत्तम गोकुल, एक नाटक में ३२ पात्र काम करते हैं ऐसे पांच सौ उत्तम नाटक सर्वरत्नमय लक्ष्मी के भंडार के समान पांच सौ उत्तम घोड़े सर्वरत्नमय लक्ष्मी के भंडार के समान पांच सौ उत्तम हाथी, पांच सौ उत्तम यान - गाड़ी आदि, पांच सौ उत्तम युग्य - एक प्रकार का वाहन जिसे गोल्लदेश में जम्पान कहते हैं, पांच सौ उत्तम शिविकाएं -पालकिये, पांच सौ उत्तम स्यन्दमानिका-पालकीविशेष, इसी प्रकार पांच सौ उत्तम गिल्लिये (हस्ती के ऊपर की अम्बारी-जिस पर सवार बैठते हैं उसे गिल्ली कहते हैं), पांच सौ उत्तम थिल्लियां (थिल्ली घोड़े की काठी को कहते हैं।, पांच सौ उत्तम विकटयान - बिना छत की सवारी पांच सौ पारिवानिक - क्रीड़ादि के लिए प्रयुक्त किये जाने वाले रथ, पांच सौ सांग्रामिक रथ, पांच सौ उत्तम घोडे, पांच सौ उत्तम हाथी. दस हजार कुल परिवार जिस में रहे उसे ग्राम कहते हैं ऐसे पांच सौ उत्तम गांव. पांच सौ उत्तम दास, पांच सौ उत्तम दासिर, पाच सो उत्तम किंकर पूछ कर काम करने वाले, पांच सौ कंचुकी-अन्त:पुर के प्रतिहारी, पांच सौ वर्ष - धर - वह नपुसक जो अन्तःपुर में काम करते हैं, पांच सौ महत्तर- अन्तःपुर का काम करने वाले, शृखला--- सांकल वाले पांच सौ सोने के दीप ' सांकल वाले पांच सौ चांदी के दीप, सांकल वाले पांच सौ सोने और चांदी अर्थात् दोनों से निमित दीप, ऊंचे दंड वाले पांच सौ सोने के दीप, ऊचे दंड वाले पांच सौ चांदी के दीप, ऊंचे दंड वाले पांच सौ सोने और चांदी के दीप, पंजर- फानूस (एक दड में लगे हुए शीशे के कमल या गिलास प्रा.द जिन में बत्तियां जलाई जाती हैं ) वाले पांच सौ सोने के दीप, पजर वाले पांच सौ चांदी के दीप, पजर वाले सोने और चांदी के पांच सौ दीप, पांच सौ सोने के थाल, पांच सौ चांदी के थाल. पांच सौ सोने और चांदी के थाल. पांच सौ सोने की कटोरियां पांच सौ चांदो की कटोरियां, पांच सौ सोने और चांदी की कटोरियां, पांच सौ सुवर्णमय दपण के आकार वाले पात्रविशेष. पांच सौ रजतमय दर्पण के आकार वाले पात्रविशेष, पांच सौ सुवर्णमय और रजतमय दर्पण के श्राकार वाले पात्रविशेष, पांच सौ सुवर्णमय मल्लक - पानपात्र (कटोरा). पांच सौ रजतमय मल्लक पांच सौ सुवर्ण और चांदी के मल्लक, पांच सौ सुवर्ण की तलिका- पात्रीविशेष, पांच सौ रजत की तलिका. पांच सौ सुवण और रजत की तलिका, पांच सौ सुवर्ण की कलाचिकाचमचे पांच सौ रजत के चमचे, पांच सौ सुवर्ण और रजत के चमचे, पांच सौ सुवर्ण के तापिकाहस्तपात्रविशेष, पांच सौ रजत के तापिकाहस्त, पांच सौ सुवर्ण और रजत के तापिकाहस्त, पांच सौ सुवर्ण (१) कहीं " पांच सौ सामान्य मुकुट तथा पांच सौ उत्तम मुकुट-" ऐसा अर्थ भी देखने में आता है। इसी भांति कुण्डलादि के सम्बन्ध में भी अर्थभेद उपलब्ध होता है । For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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