SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 567
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir नवम अध्याय हिन्दी भाषा टीका सहित । [४७९ से ले कर-पच्चभवनाणे-यहाँ तक के पद पृष्ठ.... २३४ पर लिखे जा चुके हैं । अन्तर मान्न इतना है कि वहां भग्नसेन का नाम है, जब कि प्रस्तुत में सिंहसेन का। शेष वर्णन समान ही है । . नीहरणं० - यहां नीहरण पद सांकेतिक है जो कि -तप णं से सोहसेणे कुमारे बहुहिं राईसर. जाब सत्यवाहप्पभितीहिं सद्धि संपरिवुडे रोयमाणे कन्दमाणे विलवमाणे महासेणस्स ररामो महया इढिसकारसमुदएणं नीहरणं करेइ २ बहुई लोइयाई मर्याकञ्चाई करेइ - इन पदों को तथा उसके आगे दिया गया बिन्दु-तते गं ते बहवे राईसर० जाव सत्थवाहा सीहसेणं कुमारं महया २रायाभिसेगेणं अभिसिंचंति तते णं सीहसेणे कमारे-इन पदों का परिचायक है। इन पदों का अर्थ पृठ ३३० पर किया जा चुका है। अन्तर मात्र इतना है कि वहां शतानीक राजा तथा उदयन कुमार का वर्णन है जब कि प्रस्तुत में महासेन राजा और सिंहसेन कुमार का नामगत भिन्नता के अतिरिक्त शेष वृत्तान्त समान है । तथा-महया० -- यहां के विन्दु से अभिमत पाठ की सूचना पृष्ठ १३८ पर दी जा चुकी है। , इसके पश्चात् क्या हुश्रा ?, अब सूत्रकार उसका वर्णन करते हुए कहते हैं मल-'तते णं से सीहसेणे राया सामाए देवीए मुच्छिते. ४ अवसेसाओ देवीप्रो णो आढाति, णो परिजाणाति । अणाढायमाणे अपरिजाणमाणे विहरति । तते णं ता सिं एगूणगाणं पंचएहं देवीसयाणं, एक्कूणाई पंचमाईसयाई इमीसे कहाए लट्ठाई समाखाई एवं खलु सीहसेणे राया सामाए देवोए मुच्छिते ४ अम्हं धूयाओ नो पाढाति नो परिजाणाति, प्राणाढायमाणे, अपरिजाणमाणे विहरति । तं सेयं खलु अम्हं सामं देविं अग्गिप्पओगेण वा विसप्पओगेण वा सत्थप्पभोगेण वा जीवियानो ववरोवित्तए । एवं संपेहेन्ति संपेहिता सामाए देवीए अंतराणि य छिदाणि य विरहाणि प पडिजागरमाणीयो पडिजागरमाणीओ विहरति । तते णं सा सामा देवी इपीसे कहाए लट्ठा समाणी एवं वयासी-एवं खलु ममं एगूणगाण पंचएहं सवत्तीसयाण पंचमाइसया इमीसे कहाए लट्ठाई समाणाई अन्नमन्नं एवं वयासी-एवं खलु सीहसेणे जाव पडिजागरमाणीयो विहरन्ति । तं नः नज्जति णं ममं केणति कुमारेणं मारेस्संति, त्ति कट्ट भीया ४ जेणेव कोवघरे तेणेव उवागच्छा उवागन्छित्ता ओहय० जाव झियाति । . (१) छाया - तत: स सिहसेनो राजा श्यामायां देव्यां मूच्छित: ४ अवशेषा देवीनों आद्रियते, नो परिजानाति, अनाद्रियमाणोऽपरिजानन् विहरति । ततस्तासामेकोनानां पंचानां देवीशतानामेकोनानि पञ्चमातृशतानि अनया कथया लब्धार्थानि सन्ति एवं खलु सिहसेनो राजा श्यामायां देव्यां मूच्छितः ४ अस्माकं दुहितों आद्रियते नो परजानाति, अनाद्रियमाणोऽपरिजानन् विहर ते । तच्छ यः खल्वमाकं श्यामां देवीम ग्निप्रयोगेण वा विषप्रयोगेण वा शस्त्रप्रयोगेण वा जीविताद् व्यपरोप येतुम् । एवं सम्प्रेक्षन्ते संप्रेक्ष्य श्यामायाः देव्याः अन्तराणि च छिद्राणि च विरहांश्च प्रतिजाग्रत्यः प्रतिजाग्रत्यो वहरन्ति । ततः मा यामा देवी अनया कथया लब्धार्था सती एवमवादीत् - एवं खलु मम एकोनानां पंचानां पत्नीशनानां एकोनानि पञ्चमातृशतानि अनया कथा लब्धार्थानि सन्त्यन्योन्यमेवमव. शादिषः-एवं खलु सिंहसेनो यावत् प्रति जाग्रत्यो विहरन्ति -तद न ज्ञायते मां केनचित् कुमारण पारयिष्यन्ति .” इति कृत्वा भीता ४ यत्रैव कोपगृह तत्र वोपागच्छति उपागत्य अरहत- यावद् ध्यायति । For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy