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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org श्री विपाक सूत्र [सप्तम अध्याय ठिति० जाव नामधेन्जं करेंति- जम्हा णं अम्हं इमे दारए उबरदत्तस्स जक्खस्स उवाइयलद्धए, तं होउ णं दारए उबरदत्ते नामेणं । तते णं से उबरदत्ते दारए पंचधातीपरिग्गहिते जाव परिवड्ढति । तते णं से सागरदत्ते सत्थवाहे जहा वियमित्त कालधम्मुणा संजुत्ते, गंगादत्ता वि, उम्वरदत्ते वि निच्छूढे जहा उझियए । तते णं सम्म उम्बरदत्तस्स अन्नया कयाइ मरीरगंसि जमगसमगमेव सोलस रोगायंका पाउब्भूया, तंजहा-१-सासे, २-खासे, जाव १६-कोढे । तते णं से उम्बरदत्ते दारए मोलसहि गेगायंकेहिं अभिभूते समाणे सडियहत्य. जाव विहरति । एवं खलु गोतया ! उम्बरदत्ते दारए पुग जाव विहर्गत । पदार्थ-तते णं-तदनन्तर । सा-उस । गंगादत्ता - गङ्गादत्ता ने । णवण्हं मासानवमास । बहुपडिपुराणाणं-लगभग परिपूर्ण होने पर । दारगं-बालक को । पयाया--जन्म दिया। ठिति०-माता पिता ने स्थितिपतिता - पुत्रजन्मसम्बंधी उत्सवविशेष । जाव - यावत् । नामधेज्जं करोति-नामकरण संस्कार किया । जम्हार-जिस कारण । अम्हं-हमारा । इमे बालक । उम्बरदत्तस्स- उम्बरदत्त । जक वस्स - यक्ष की । उवाइयजए-मन्नत मानने से उपलन्ध हुआ है - प्राप्त हुआ है । तं-अत.। होउ - हो। दारए - हमारा यह बालक । उम्बरदत्त-उम्बरदत्त । नामेणं · नाम से । तते णं - तदनन्तर । से वह । उम्बरदत्त ---उम्बरदत्त । दारए-बालक । पंचधातीपरिग्गहिते - पंच धाय माताओं से परिगृहीत हुा । परिवड्ढतिवृद्धि को प्राप्त करने लगा । तते णं-तदनन्तर । से-वह । सागरद-सागरदत्त । सत्यवाहेसार्थवाह -- संघनायक | जहा-जिस प्रकार । विजयमित्रो - विजयमित्र का वर्णन किया है, तद्वत् । कालधम्मुणा- कालधर्म से संयुक्त हुअा अर्थात् मर गया गंगादत्ता वि-गङ्गादत्ता भी कालधर्म को प्राप्त हुई । उम्बरदत्ते वि-उम्परदत्त भी। निच्छू घर से बाहिर निकाल दिया गया। जहा - जैसे । उज्झियए-उज्झितक कुमार अर्थात् उस का घर से निकलना द्वितीय अध्ययन में वर्णित उज्झितक कुमार के समान जान लेना चाहिये। तते णं-- तदनन्तर । अन्नया कयाइ-किसी अन्य समय । तस्स - उस । उम्बरदत्तस्स-उम्बरदत्त के सरीरगंसि शरीर में । जमगसमगमेव-एक ही समय में सालस - सोलह प्रकार के रोगायंका रोगातक -- भय कर रोग । पाउन्भता-प्रादुभूत हुए -- उत्पन्न हो गये । तंजहा-जैसे कि । -सासे-१ - श्वास । २-खासे -२-कास --खांसी जाव यावत्। १६-कोहे - १६ - कुष्ठ रोग तते णं- तदनन्तर । से-वह । उम्बरदत्त-उम्बरदत्त । दारय - बालक । सोलसहि-सोलह प्रकार के । रोगायंकेहि-रोगातंकों से । अभिभूते समाणे-अभिभूत हुश्रा । सडियहत्थ० -ग़ले हए हस्तादि से युक्त । जाव यावत् । विहरति --समय व्यतीत कर रहा है । एवं खल-इस क्य ही । गोतमा!- हे गौतम! । उम्बरदत्त दारए उम्बरदत्त बालक । पग-परातन । जाव - यावत् कर्मों को भोगता हुअा । विहरति - समय बिता रहा है। मूलार्थ-तत्पश्चात लगभग नव मास पारपूर्ण हो जाने पर गंगादत्ता ने एक बालक को जन्म दिया। माता पिता ने स्थितिपतिता नामक उत्सव विशेष मनाया और बालक उबमदत्त यक्ष की मन्नत ततस्तस्योम्बरदत्तस्यान्यदा कदाचित् शरीरे युगपदेव षोडश रोगातंकाः प्रादुर्भूताः। तद्यथा-१-श्वासः, २-कास: यावत् १६-कुष्ठः । ततः स उम्बरदत्तो दारक: षोडशभी रोगांतकैरभिभूत: सन् शटितस्त. यावद् विहरति । एवं खलु गौतम ! उम्बरदत्तो दारकः पुरा यावद् विहरति । For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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