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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सप्तम अध्याय 7 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir हिन्दी भाषा टीका सहित मानने से हुआ है, इस लिए उन्हों ने इस का उम्बरदत्त यह नाम रखा, अर्थात् माता पिता ने उस का उम्बरदत्त नाम स्थापित किया । तदनन्तर उम्बरदत्त बालक पांच घाय माताओं से सुरक्षित हो कर वृद्धि को प्राप्त करने लगी । तदनन्तर अर्थात् उम्बरदत्त के युवा हो जाने पर विजयमित्र की भान्ति सागरदत्त सार्थवाह समुद्र में जहाज के जलनिमग्न हो जाने के कारण कालधर्म को प्राप्त हुआ तथा गंगादशा भी पतत्रियोगजन्य असह्य दुःख से दुखी हुई कालधर्म को प्राप्त हुई, तथा उस्तिक कुमार की तरह उम्बरदत्त को भी घर से बाहिर निकाल दिया गया । [ ४१५ तत्पश्चात् किसी अन्य समय उम्बरदत्त के शरीर में एक ही साथ सोलह प्रकार के रोगान्तक उत्पन्न हो गये, जैसेकि - १ - श्वास, २ – कास यावत् १६ – कुष्ठ रोग । इन सोलह प्रकार के रोगान्तकों —भयंकर रोगों से अभिभूत-व्याप्त हुआ उम्बरदत्त यावत हस्तादि के सड़ जाने से दुःखपूर्ण जीवन जा रहा है । भगवान् कहते हैं कि हे गौतम ! इस प्रकार उम्वरदत्त बालक पूर्वकृत अशुभ कर्मों का यह भयकर फल भोगता हुआ इस भान्ति समय व्यतीत कर रहा है । टीका - शास्त्रों में गर्भस्थिति का वर्णन लगभग सवा नौ महीने का पाया जाता है, इतने समय में गर्भस्थ प्राणी के अंगोपांग पूर्णरूप से तैयार हो जाते हैं और फिर वह जन्म ले लेता है । श्रेष्ठभार्या गंगादत्ता के गर्भ का भी काल पूर्ण होने पर उसने एक नितान्त सुन्दर बालक को जन्म दिया। बालक के जन्मते ही सेठ सागरदत्त को चारों ओर से बधाइयां मिलने लगीं। सागरदत्त को भी पुत्रजन्म से बड़ो खुशी हुई और गंगादत्ता की खुशी का तो कुछ पारावार ही नहीं था । दम्पती ने पुत्र-जन्म की खुशी में जी खोलकर धन लुटाया | कुलमर्यादा के अनुसार बालक का जन्मोत्सव बड़े समारोह के साथ मनाया गया और जन्म से बारहवें दिन जब नामकरण का समय आया तो सेठ सागरदत्त ने अपनी सारी जाति को तथा अन्य सगे सम्बन्धियों एवं मित्रादियों को आमंत्रित किया और सबको प्रीतिभोजन कराया। तत्पश्चात् सभी के सन्मुख बालक के नाम की उद्घोषणा करते हुए कहा कि प्रियबन्धुत्रो ! मुझे यह बालक अन्तिम आयु में मिला है और मिला भी उम्बरदत्त यक्ष के अनुग्रह से है अर्थात् उसको मन्नत मानने के अनन्तर ही यह उत्पन्न हुआ है अतः मेरे विचारानुसार इसका उम्बरदत्त (उम्बर का दिया हुआ ) नाम रखना ही समुचित है । सागरदत्त के इस प्रस्ताव का सबने समर्थन किया और तब से नवजात बालक उम्बरदत्त के नाम से पुकारा जाने लगा । For Private And Personal चालक उम्बरदत्त १ – दूध पिलाने वाली, २- स्नान कराने वाली, ३ – गोद में उठाने वाली, ४ क्रीड़ा करने वाली, और ५ - श्रृंगार कराने वालो - शरीर को सजाने वाली इन पांच धाय माताओं के प्रबन्ध में पालित और पोषित होता हुआ बढ़ने लगा । शनैः २ शैशव अवस्था का कम करके युवावस्था में पदार्पण करने लगा । तात्पर्य यह है कि बालभाव को त्याग कर वह युवावस्था को प्राप्त हो गया । शास्त्रों में लिखा है कि कर्मों का प्रभाव बड़ा विचित्र होता है शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के कर्म समय पर अपना पूरा २ प्रभाव दिखलाते हैं। इस संसारी जीव के जिस समय शुभ कर्म उदय में आते हैं तब वह हर प्रकार से सुख का ही उपभोग करता है । उस समय वह यदि मिट्टी को भी हाथ डालता है तो वह भी सोना बन जाती है, और इसके अशुभ कर्म के उदय
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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