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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कि इस में सर्वश्रेष्ठता किस बात बल पर यह इतना श्रेष्ठ बन अथ सप्तम अध्याय मानव संसार का सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वोत्तम प्राणी माना जाता है, परन्तु जरा विचार कीजिये की है ? अर्थात् मानव के पास ऐसी कौन सी वस्तु है कि जिस के गया है १ Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir क्या मानव के पास शारीरिक शक्ति बहुत बड़ी है या यह पू ंजीपति है ? जिस के कारण यह मानव सर्वश्रेष्ठता के पद का भाजन बना हुआ है ? नहीं नहीं इन बातों में से कोई भी ऐसी बात नहीं है जो इस की महानता का कारण बन रही हो । क्योंकि संसार में हाथी आदि ऐसे अनेकानेक विराटकाय प्राणी अवस्थित हैं. जिन के सन्मुख मानव का शारीरिक बल कुछ भी मूल्य नहीं रखता, यह उन के सामने तुच्छ है, नगण्य है । धन मानव की उत्तमता का कारण नहीं बन सकता, क्योंकि भारत के ग्रामीण लोगों का “ – जहां कोई बड़ा सांप रहता है, वहां अवश्य कोई धन का बड़ा खजाना होता है - " यह विश्वास बतलाता है कि धन से चिपटने वाला मानव सांप ही होता है, मनुष्य नहीं । इसके अतिरिक्त धन के कुपरिणामों के अनेकानेक उदाहरण इतिहास में उपलब्ध होते हैं । रावण के पास कितना धन था ? सारी लंका सोने की बनी हुई थी । यादवों की द्वारका का निर्माण देवताओं के हाथों हुआ था, वह भी हीरे पन्ने आदि जवाहरात से । भारत के धन वैभव पर मुग्ध हुए यूनान के सिकन्दर ने लाखों मनुष्यों का संहार किया । मन्दिरों को तोड़ करोड़ों का धन भारत से लूटा। उसे अपने ऐश्वर्य का कितना महान् घमंड था ?, ऐसे ही दुर्योधन के, कोणिक के आदि अनेकों उदाहरण दिये जा सकते हैं, परन्तु हुआ क्या १, सोने की लका ने रावण को राक्षस बना दिया और स्वर्ण और रत्नों से निर्मित द्वारिका ने यादवों को नरपशु । सिकन्दर धनवैभव से देश संत्रस्त हो उठा था दुर्योधन महाभारत के भीषण युद्ध का मूल बना कोणिक ने अपने पूज्य पिता श्रेणिक को पिंजरे का दो बना डाला था। सारांश यह है कि धन के अतिरेक ने इन सब को अन्धा बना दिया था, उन के विवेक चतु ज्योतिर्विहीन हो चुके थे । मात्र धन के आधिक्य ने मानव को सर्वश्रेष्ठ प्राणी बनाया है, यह बात नहीं कही जा सकता । इसी भान्ति परिवार आदि के अन्य अनेकों बल भी इसे महान् नहीं बना सकते । । फिर वही प्रश्न सामने आता है कि मानव के सर्वश्रेष्ठ कहलाने का वास्तविक कारण क्या है ? इस प्रश्न का यदि एक ही शब्द में उत्तर दिया जाये तो वह है - मानवता । भगवान् महावीर ने या अन्य अनेकों महापुरुषों ने जो मानव की श्रेष्ठता के गीत गाए हैं. मानवता के गहरे ग से रंगे हुए सच्चरित्र मानवों के ही गए हैं । मानव के हाथ, पैर पा लेने से कोई मानव नहीं बन जाता, प्रत्युत मानव बनता है - मानवता को अपनाने से । यों तो रावण भी मानव था, परन्तु लाखों वर्षों से प्रतिवर्ष उसे मारते आरहे हैं, गालियां देते आरहे हैं. जलाते आरहे हैं | यह सब कुछ क्यों ? इसी लिये कि उस ने मानत्र हो कर मानवता का काम नहीं किया, फलत: वह मानव हो कर भी राक्षस कहलाया । शास्त्रों में मानवता की बड़ी महिमा गाई है। जहां कहीं भी मानवता का वर्णन है वहां For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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