SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 385
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir चतुर्थ अध्याय ] हिन्दी भाषा टीका सहित । [२९७ में ले लिया । ऐसा करने का अभिप्राय सम्भवतः यही होगा कि यह चिरंजीवी रहे । अस्तु, कुछ भी हो, इस नवजात शिश के कुछ काल तक जीवित रहने से उसके हृदय में कुछ ढाढस अवश्य बन्ध गई और वह उस के पालन पोषण के निमित्त पूरी २ सावधानी रखने लगी तथा उसके संरक्षणार्थ नियत की गई धायमाताओं के विषय में भी वह बराबर सचेत रहती । इस प्रकार उस नवजात शिशु का बड़ी सावधानी के साथ संरक्षण, संगोपन और सम्वर्धन होने लगा। आज उस के नाम रखने का शभ दिवस है, इस के निमित्त सुभद्र सार्थवाह ने बड़े भारी उत्सत्र का आयोजन किया । अपने सगे सम्बन्धियों के अतिरिक्त नगर के अन्य प्रतिष्ठित व्यक्तियों को भी आमंत्रित किया और सब का खान पानादि से यथोचित स्वागत करने के अनन्तर सब के समक्ष उत्पन्न बालक के नाम-करण करने का प्रस्ताव उपस्थित करते हुए उन से कहा कि प्रिय बन्धुरो ! हमारा यह बालक उत्पन्न होते ही एक शकट – गाडे के नीचे स्थापित किया गया था, इसलिये इस का नाम शकट कुमार रखा जाता है । उपस्थित लोगों ने भी इस नाम का समर्थन किया और उत्पन्न बालक को शुभाशीर्वाद देकर वे बिदा हुए । सूत्रकार ने शकट कुमार के जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त की सारी जीवनचर्या को द्वतीय अध्ययन में वर्णित उज्झितक कुमार के समान जानने की सूचना करते हुए "सेसं जहा उज्झियए" इतना कह कर बहुत संक्षेप से सब कुछ कह दिया है। जहां जहां कुछ नामादि का भेद है, वहां २ उसका उल्लेख भी कर दिया है, जोकि सूत्रकार की वर्णनशैली के सर्वथा अनुरूप है। इसके अतिरिक्त उसका यहां पर यदि सारांश दिया जाय तो यह कहना होगा कि-जब पांचों धायमाताओं से पोषित हुआ शकट कुमार युवावस्था को प्राप्त हुआ तब पिता ने अर्थात् सुभद्र सार्थवाह ने विदेश-यात्रा की तैयारी की। दुर्दैववशात् समुद्रयात्रा में उसका जहाज़ समुद्र में डूब (१) यहां प्रश्न होता है कि जब आत्मा के साथ आयुष्कर्म के दलिक ही नहीं तो गाड़े के नीचे रख देने मात्र से बालक चिरंजीवी कैसे हो सकता है ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि वास्तव में बालक के चिरंजीवी होने का कारण उस का अपना ही आयुष्कर्म है । गाड़े और जीवनदृद्धि का परस्पर कोई सम्बन्ध नहीं है, क्योंकि जिस का आयुष्कर्म पर्याप्त है, उसे चाहे गाडे के नीचे रखो य न रखो उसे तो यथायु जीवित ही रहना है, परन्तु जिसका आयुष्कर्म समाप्त हो त हो रहा है वह गाडे आदि के नीचे रखने पर भी जीवित नहीं रह सकता। भद्रा की सन्तति उत्पन्न होते ही मर जाती थी, इससे वह हतोत्साह हो रही थी। उसने सोचा - बहुत उपाय किये जा चुके हैं, परन्तु सफलता नहीं मिल सकी, अतः अब कि बार नवजात शिशु को गाडे के नीचे रख कर देखले, संभव है कि इस उपाय से वह बच जाये । इधर इस का ऐसा विचार चल रहा था और उधर गर्भ में आने वाला जीव दीर्घजीवन लेकर आ रहा था। परिणाम यह हा कि गाडे के नीचे रखने पर नवजात बालक मरा नहीं । ऊपराऊपरी देखने से तो भले ही गाडा उस में कारण जान पड़ता हो परन्तु वास्तविकता इस में नहीं है। वास्तविकता तो अायुष्कर्म की दीर्घता ही बतलाती है । क्यों कि गाडे के नीचे रखना ही यदि जीवन वृद्धि का कारण होता तो अपने को गाडे के नीचे रख कर प्रत्येक व्यक्ति मृत्यु से बच जाता, और मृत्यु की अचलता को चलता में बदल देता। (२) नामकरण की इस परम्परा का उल्लेख श्री अनुयोगद्वार सूत्र में पाया जाता है, जिसका उल्लेख पृष्ठ १५९ पर किया जा चुका है। For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy