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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir चतुर्थ अध्याय ] हिन्दी भाषा टीका सहित । [२८५ विता तहेब जाव भगवं वागरेति । पदार्थ-तेणं कालेणं-उस काल में । तेणं समरणं-उस समय मैं। समणे-श्रमण । भगवं-भगवान् । महावीरे- महावीर स्वामी । समोसढे-पधारे । परिसा य-परिषद् - जनता तथा । राया-राजा, नगर से । निग्गते-निकले । धम्मो-धर्म का । कहिओ-प्ररूपण किया । परिसा-परिषद् । पडिगया-चली गई । राया-राजा । वि-भी । णिग्गओ- चला गया। तेणंकालेणं २-उस काल तथा उस समय में । समणस्स० - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के । जे?-ज्येष्ठ–प्रधान । अंतेवासी-शिष्य । जाव - यावत् । रायमग्गे- राजमार्ग में । श्रोगाढेगये । तत्थ णं-वहां पर । हत्थी-हस्तियों को । आसे- अश्वों को, तथा । पुरिसे०-पुरुषों को देखते हैं । तेसिं च-और उन । पुरिसाणं-पुरुषों के | मझगतं- मध्य में । सइथियं-स्त्री से सहित । अवोडगबंधणं-अवकोटकबंधन अर्थात् जिस बंधन में गल और दोनों हाथों को मोड़ कर पृष्ठभाग पर रज्जु के साथ बांधा जाए उस बंधन से युक्त । उक्खित्तकराणनासं-जिस के कान और नासिका कटे हुए हैं । जाव- यावत् । उग्घोसणं-उद्घोषणा से पुक्त । एगं-एक पुरिसं-पुरुष को । पासति-देखते हैं, देखकर । चिंता-चिन्तन करने लगे । तहेव-तथैव । जाव- यावत् । भगवं-भगवान् महावीर स्वामी । वागरेति- प्रतिपादन करने लगे । मूलाथ-उस काल तथा उस समय साहजनी नगरी के बाहिर देवरमण उद्यान में श्रमण भगवान महावीर स्वामो पधारे । नगर से भगवान के दर्शनार्थ जनता और, राजा निकले । भगवान् ने उन्हें धर्मदेशना दी । तदनन्तर धर्म का श्रवण कर जनता और राना सब चले गये। तब श्रमण भगवान् महावीर स्वामो के ज्येष्ठ शिष्य था गौतम स्वामी यावत. राजमार्ग में पधारे। ___ वहां उन्हों ने हाथियों, अश्वों और पुरुषों को देखा, उन पुरुषों के मध्य में अंवकोटकबन्धन से युक्त, कान और नासिका कटे हुए उद्घोषणायुक्त तथा सस्त्रीक-स्त्रीसहित एक पुरुष को देखा, देख कर गौतम स्वामी ने पूर्ववत् विचार किया और भगवान् से आकर निवेदन किया तथा भगवान उत्तर में इस प्रकार कहने लगे टीका- साहंजनी नगरी का वातावरण बड़ा सुन्दर और शान्त था । वहां की प्रजा अपने भूपति के न्याययुक्त शासन से सर्वथा प्रसन्न थी । राजा भी प्रजा को अपने पुत्र के समान समझता था । जिस प्रकार शरीर के किसी अंग में व्यथा होने से सारा शरीर व्याकुल हो उठता है ठीक उसी प्रकार महाराज महाचन्द्र भी प्रजा की व्यथा से विकल हो उठते और उसे शान्त करने का भासक प्रयत्न किया करते थे । वे सदा प्रसन्न रहते और यथासमय धर्म का अाराधन करने में समय व्यतीत किया करते थे । आज उन की प्रसन्नता में आशातीत वृद्धि हुई, क्यों कि उद्यानपालमाली ने आकर इन्हें देवरमण उद्यान में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के पधारने का शुभ संदेश दिया। .... माली ने कहा-पृथिवीनाथ ! आज मैं आप को जो समाचार सुनाने आया हूं, वह आप को बड़ा ही प्रिय लगेगा । हमारे देवरमण उद्यान में ब्राज पतितपावन श्रमण भगवान् महावीर स्वामी अपने शिष्यपरिवार के साथ पधारे हैं । बस यही . मंगल समाचार आप को सुनाने के लिये मैं आप की सेवा में उपस्थित हुश्रा. हूं, ताकि अन्य जनता की तरह आप भी उनके पुण्यदर्शन का सौभाग्य प्राप्त करते हुए अपने प्रात्मा को कृतकृत्य बनाने का सुअवसर उपलब्ध कर सकें। For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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