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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir २८४] श्री विपाक सूत्र [चतुर्थ अध्याय विशिष्ट सांसारिक सुख देने वाला एक पुत्र भी था। जो कि शकट कुमार के नाम से प्रसिद्ध था। शकट कुमार जहां देखने में बड़ा सुन्दर था वहां वह गुण - सम्पन्न भी था । उसकी बोल चाल बड़ी मोहक थी। -रिद्धत्थिमिय०- यहां के बिन्दु से जो पाठ विवक्षित है उस की सूचना पृष्ठ १३८ पर दी जा चुकी है। तथा-पुराणे--यहां के बिन्दु से औपपातिक सूत्रगत-सद्दिए, वित्तिप कित्तिए-इत्यादि पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है । इन पदों का अर्थ वहीं प्रौपपातिक सूत्र में देख लेना चाहिये । तथा-महता०- यहां के बिन्दु से विवक्षित पाठ की. सूचना भी पृष्ठ १३८ पर दी जा चुकी है। .. -सामभेयदंड० -- यहां के बिन्दु से - "उवप्पयाणनीतिसुप्पउत्त-णय -विहिन्नू ईहा हमग्गणगवेसणअत्थसत्थमइविसारए उप्पत्तियाए वेणइयाए, कम्मियाए पारिणामिश्राप चउब्धिहाए बुद्धिए उववेए- इत्यादि औपपातिकसूत्रगत पदों का ग्रहण करना चाहिये । इन पदों की व्याख्या औपपातिक सूत्र में देखी जा सकती है। प्रस्तुत प्रकरण में जो सूत्रकार ने - सामभयदंडउवप्पयाणनीतिसुप्पउत्तणयविहिन्नू - यह सांकोतिक पद दिया है । इसकी व्याख्या निम्नोत है साम, भेद, दण्ड और उपप्रदान (दान) नामक नीतियों का भली प्रकार से प्रयोग करने वाला तथा न्याय अथवा नीतियों की विधियों का ज्ञान रखने वाला सामभेदटराडोपप्रदाननीतिसप्रयुक्तनयविधिश कहलाता है। -बएणो -पद का अर्थ है-वर्णक अर्थात् वर्णनप्रकरण । सूत्रकार ने वर्णक पद से गणिका के वर्णन करने वाले प्रकरण का स्मरण कराया है। गणिका के वर्णनप्रधान प्रकरण का उल्लेख प्रस्तुत. सूत्र के दूसरे अध्ययन के पृष्ठ १०४ पर किया जा चुका है। ___ -अडढे०- यहां के बिन्दु से जो. पाठ विवक्षित है उस का उल्लेख पृष्ठ १२० पर किया जा चुका है । तथा--अहीण- यहां के बिन्दु से विवक्षित पाठ का वर्णन पृष्ठ १०५ की टिप्पण में किया जा चका है तथा दूसरे-अहीण-के बिन्दु से अभिमत पाठ का वर्णन पृष्ठ १२० पर किया गया है । ....... प्रस्तुत सूत्र में प्रस्तुत अध्ययन के मुख्य २ पात्रों का मात्र नाम निर्देश किया गया है । इन का विशेष वर्णन आगे किया जायेगा । अब सूत्रकार निम्न लिखित सूत्र में भगवान् महावीर स्वामी के पधारने और भिक्षार्थ गये हुये गौतम स्वामी के दृश्यावलोकन के विषय का वर्णन करते हैं - मूल-' तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे, परिसा राया य निग्गते, धम्मो कहियो, परिसा पडिगया राया वि णिग्गयो । तेणं कालेणं २ समणस० जेद्र अंतेवासी जाव रायमग्गे ओगाढे । तत्थ णं हत्थी, आसे, पुरिसे० तेसि च ण पुरिसाणं मझगतं पासति एगं सइत्थियं पुरिसं अवओड़गबंधणं उक्खित्तकगणनासं, जाव उग्धोसण (१) छाया- तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमणो भगवान् महावीरः समवसृतः । परिषद् राजा च निर्गत: । धर्म कथितः। परिषद् प्रतिगता, राजापि निर्गतः । तस्मिन् काले २ श्रमणस्य. ज्येष्ठोऽन्तेवासी यावदु राजमार्गेऽवगाढः । तत्र हस्तिनोऽश्वान् पुरुषान्०, तेषां च पुरुषाणां मध्यगतं पश्यति एक सस्त्रीकं पुरुषं, अवकोटकबंधनम्, उत्कृत्तकर्णनासं, यावद् उद्घोषणं, चिंता तथैव यावद भगवान् व्याकरोति । For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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